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________________ २५० सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना द्विसन्धान-महाकाव्य मूलत: द्वादशाङ्गवाणी (श्रुतस्कन्ध) को अपने काव्य का आधार स्वीकार करता है, परन्तु हम यह भी देख सकते हैं कि रामकथा का जो रूप धनञ्जय ने स्वीकार किया है वह विशुद्ध रूप से जैन परम्परानुमोदित ही नहीं अपितु वाल्मीकि रामायण से भी बहुत कुछ प्रभावित है। द्विसन्धानकार ने जैन दर्शन के ध्रौव्य-उत्पाद-व्यय रूप त्रिपुटी को क्रमश: ब्रह्मा-विष्णु-महेश के रूप में भी रूपान्तरित किया है, जो इस बात का प्रमाण है कि आलोच्य काल में जैन आचार्य वैदिक संस्कृति के तत्कालीन लोकप्रिय मूल्यों का भी अपने धर्म और दर्शन के साथ समन्वय बिठाने की चेष्टा कर रहे थे । यहाँ तक कि द्विसन्धानकार ने बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रतनाथ तथा बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ को समस्त तीर्थंकरों का द्योतक मानकर उनमें राम तथा कृष्ण के रूप की परिकल्पना की है। वे मोक्ष को लक्ष्मी के उपमान से भी अभिहित करते हैं। पद्मपुराणकार ने पहले ही वर्ण-व्यवस्था के जैनानुसारी रूप को मान्यता प्रदान कर दी थी। द्विसन्धान-महाकाव्य में पूजा-पद्धति एवं संस्कार विधान आदि अनेक धार्मिक गतिविधियाँ ऐसी कही जा सकती हैं जो तत्कालीन हिन्दू धर्म एवं जैन धर्म में पर्याप्त समानता से युक्त हैं। द्विसन्धान-महाकाव्य में प्रतिपादित विभिन्न धार्मिक एवं दार्शनिक गतिविधियाँ इस प्रकार हैंपंचपरेमष्ठी पूजन द्विसन्धान-महाकाव्य के अनुसार उस समय पुण्यात्मा लोग मन्त्रों द्वारा पूजा-उपासना करते थे। किसी शुभ कार्य के प्रारम्भ से पूर्व पंचपरमेष्ठी की स्तुति का उल्लेख भी द्विसन्धान में हआ है। अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधु-ये पाँच परमेष्ठी माने गये हैं । अर्हन्त को समवशरण में अशोक वृक्ष के नीचे विराजमान होने से दर्शनीय तथा अनन्त सुखरूपी मोक्ष के मूलभूत महाव्रतों के १. द्विस.,१.२ २. वही,१२.५० ३. वही,१.१ पर पद-कौमुदी टीका ४. वही ५. पद्म,३.२५५-५८ ६. द्विस.,७५६ ७. वही, १२.४८-५०
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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