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________________ द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन २४३ के अतिरिक्त खच्चर, ऊँट, बैल आदि पशुओं का भी सैन्य-व्यवस्था की दृष्टि से कम महत्व नहीं था। पशुओं के अतिरिक्त मुर्गापालन व्यवसाय के उल्लेख भी द्विसन्धान में उपलब्ध होते हैं ।२ (४) वाणिज्य-व्यवसाय द्विसन्धान-महाकाव्य में उपलब्ध कोष-संग्रहण से सम्बद्ध उल्लेखों से ज्ञात होता है कि उस समय वाणिज्य-व्यवसाय विशेष प्रगति पर था। खानों से, सेतुओं से तथा वणिक्पथों से राजा द्वारा कर प्राप्त करने के उल्लेख से समुद्र व्यापार की समृद्धि द्रष्टिगोचर होती है। यहाँ तक कि नगर के बाजारों की समृद्धि का प्रमुख कारण भी खनिज व्यापार तथा समुद्र व्यापार बन चुका था। द्विसन्धान में बाजार को वणिक्पथ तथा दुकान को आपणपकी संज्ञा से अभिहित किया गया है। नगर के इन बाजारों में दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्राप्य थी। बाजारों में विक्रय की जाने वाली वस्तुओं के अन्तर्गत बहुमूल्य मूंगा, मोती, शंख, सीप, नील, कर्केतन, लाल, हीरा, गरुडमणि आदि उल्लेखनीय हैं।८ धातुओं के अन्तर्गत सोना, चांदी, कर्पूर, लोहा आदि उपलब्ध थे। इन धातुओं से बने आभूषण, आयुध आदि विभिन्न वस्तुएं भी उपलब्ध थीं। महत्वपूर्ण वस्त्रों के अन्तर्गत धोती, सिले हुए कपड़े, रेशमी वस्त्र, दुकूल, कम्बल आदि भी विक्रयार्थ दुकानों पर रखे हुए थे। इस प्रकार धातुओं में सोना, फूलों में पराग, घन पदार्थों १. द्विस.,१४.३६-३८ २. वही,४.४६ ३. वही,२.१३ ४. वही,८.२८ तथा १३४ ५. वही,१.३४ ६. वही,१.३५ ७. वही,१.३४ ८. वही,१.३२ ९. वही,१.३३ १०. वही, १.३३
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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