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________________ द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन सेना का स्वरूप तथा उसके प्रकार शुक्रनीतिसार के अनुसार शस्त्रास्त्रों से सज्जित मनुष्य आदि समुदाय को सेना कहते हैं । द्विसन्धान - महाकाव्य में चतुरंगिणी सेना का उल्लेख आया है । २ चतुरंगिणी सेना में पदाति, अश्व, रथ तथा गज सेना का परिगणन किया जाता है । द्विसन्धान में सेना की भरती के स्रोतों पर भी विचार किया गया है। इस सन्दर्भ में नेमिचन्द्र ने द्विसन्धान की अपनी टीका में छ: प्रकार की सेना का उल्लेख किया है१. मौल - वंश परम्परा से आयी हुई क्षत्रिय आदि जातियाँ, २. भृत्य - वेतन भोगी सेना, ३. श्रेणी - शस्त्रविद्या में पारंगत जातियाँ, ४. आरण्य - भील आदि जंगली जातियाँ, ५. दुर्ग- केवल दुर्ग में रहकर ही लड़ने वाली सेना तथा ६. मित्र बलमित्र - राज्यों की सेना । ३ - 1 युद्ध- धर्म, प्रयाण तथा सैन्य शिविर सामान्यत: युद्ध प्रात: प्रारम्भ होते थे तथा सायंकाल को अगले दिन के लिये स्थगित कर दिये जाते थे। इसके अतिरिक्त युद्धभूमि में पराक्रम एवं युद्ध - प्रवीणता को महत्व दिया जाता था, इसलिए पदाति के पदाति से, रथी के रथी से, अश्वारोही के अश्वारोही से तथा गजारोही के गजारोही से युद्ध में प्रत्येक को अपनी कुशलता दिखाने का अवसर मिल जाता था । ५ २३३ युद्ध प्रयाण के अवसर पर शुभ मुहूर्त देखा जाता था । समस्त सेना को विभिन्न प्रकार से सज्जित किया जाता था । ६ भेरी आदि वाद्यों के घोष से नागरिकों तथा सैनिकों को प्रयाण की सूचना दी जाती थी । ७ सैन्य प्रयाण के समय विभिन्न १. 'सेना शस्त्रास्त्रसंयुक्ता मनुष्यादिगणात्मिका', शुक्रनीतिसार, ४.८६४ २. द्विस.,१४.७ ३. ' षड्विधबलम्', द्विस, २.११ पर 'मौलं भृतक श्रेण्यारण्यदुर्गमित्रभेदनम् । मौलं पट्टसाधनम्, भृतकं पदातिबलम्, श्रेण्योष्टादशः आरण्यमाटविकम् दुर्गधूलिकोट्टपर्वतादि, मित्रं सौहृदम् ।', नेमिचन्द्र कृत पद-कौमुदी टीका द्रष्टव्य- द्विस., १७.२४,८९ 'रथो बरूथस्य हयस्य वाजी गजः करेणोः पदिकः पदातेः । दुर्मन्त्रितं ध्यानमिवात्मबिम्बं स्वस्यैव संनद्धमिवाग्रतोऽभूत् ॥', वही, १६.८ ६. वही, १४.५ ७. वही,१४.२-३ ४. ५.
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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