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________________ द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन २२३ किये गये हैं । यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के साथ न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करना चाहिए । इसके अनुसार राजा ही सज्जनों का भाग्य विधाता एवं दुर्जनों का नाशक है, अत: प्रजा को जो भी प्राप्त होता है, वह भाग्य से नहीं, अपितु राजा के द्वारा दिया जाता है ।२ इस समस्त प्रक्रिया हेतु राजा के लिये संयमित होकर, अपनी दिनचर्या व्यवस्थित कर, मन्त्रीगण तथा जनता का विश्वास प्राप्त करना आवश्यक माना गया है ।३ उत्तराधिकार प्राचीन भारतीय मान्यताओं के अनुसार राज्य का उत्तराधिकार आनुवंशिक होता था तथा बहुधा ज्येष्ठ पुत्र को ही राज्य का उत्तराधिकारी मनोनीत किया जाता था ।* कौटिल्य के अर्थशास्त्र के मतानुसार राज्य का उत्तराधिकारी ज्येष्ठ पुत्र हो, इसमें कोई हानि तो नहीं है, किन्तु अविनीत राजपुत्र राज्य का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता । मनुस्मृति के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र की उत्पत्ति के उपरान्त मनुष्य पितृ-ऋण से उऋण हो जाता है, अतः ज्येष्ठ पुत्र अपने पिता से सब कुछ प्राप्त करता है । ६ द्विसन्धान-महाकाव्य के अनुसार भी राज्य का उत्तराधिकारी राजा का वंशज होता था । वंशजों में भी ज्येष्ठ पुत्र को ही सर्वप्रथम उत्तराधिकार देने के लिये मनोनीत किया जाता था । ७ उत्तराधिकार के लिए संघर्ष द्विसन्धान- महाकाव्य में उस समय के उत्तराधिकार सम्बन्धी आन्तरिक संघर्ष का उल्लेख भी प्राप्त होता है । राजा के अपने परिवार में ही संघर्ष की यह स्थिति विद्यमान थी । रानियों का विशेष रूप से उत्तराधिकार पर हस्तक्षेप रहता था । द्विसन्धान-महाकाव्य में तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप कैकेयी द्वारा ज्येष्ठ परानीकस्तेनभयमुपायैः शमयेन्नृपः । बलवत्परिभृतानां प्रत्यहं न्यायदर्शनैः ॥', राजनीतिप्रकाश द्वारा उद्धृत, पृ. २५४-५५ १. द्विस, ४.१४,१८ २. वही, ४.१७ ३. द्रष्टव्य - वही, ४.१३ ४. पी.वी. काणे : धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-२, पृ. ५९५-९६ ५. कौटिलीय अर्थशास्त्र,१.१७ (टीकाकार- रामतेज शास्त्री पाण्डेय), काशी, १९६४, पृ.५८ ६. मनुस्मृति, ९.१०९ ७. द्विस., ४.२१
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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