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________________ द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन २२१ 'भूप' आदि अभिधानों से भी अभिहित किया जाता था। ये राजाओं की भेदपरक संज्ञा की न्यूनतम इकाई होते थे। इसकी पुष्टि इससे होती है कि द्विसन्धान-महाकाव्य में सामन्तों के लिए राजक शब्द का भी प्रयोग हुआ है, जो हीनार्थक कन् प्रत्यय से युक्त है । २ सातवीं शती से उत्तरोत्तर बारहवीं शती तक के राजस्थान की प्रतिहार-शासन प्रणाली तथा चालुक्य शासन-व्यवस्था में राजाओं के लिये 'राजाधिराज-परमेश्वर', 'महाराज', 'महाराजाधिराज-परमेश्वर' 'परमभट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर', 'चक्रवर्ती' आदि उपाधियों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में दृष्टिगोचर होता है। सामन्त व्यवस्था मध्ययुगीन राज्य-व्यवस्था के सन्दर्भ में 'सामन्त' एक महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्द माना गया है। अश्वघोष के सौन्दरनन्द५ तथा कालिदास के रघुवंश में सामन्त शब्द का इसी पारिभाषिक अर्थ में प्रयोग हुआ है । बाण के हर्षचरित के समय तक सामन्त-व्यवस्था पूर्णत: विकसित हो चुकी थी। द्विसन्धानमहाकाव्य में भी सामन्त व्यवस्था का पर्याप्त विकास दृष्टिगोचर होता है। प्राय: सामन्त राजा अपने स्वामी राजा के सामने नतमस्तक रहते थे और राज्य के महत्वपूर्ण अवसरों पर राजसभा में उपस्थित रहते थे। द्विसन्धान-महाकाव्य में नारायण द्वारा जनता के लिये की गयी सुरक्षा-व्यवस्था से प्रभावित होकर सामन्त राजाओं द्वारा जनता से होने वाली आय का जनता के हित में व्यय किये जाने का उल्लेख भी १. द्रष्टव्य-डॉ.मोहन चन्दःजैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज,पृ.८४ २. द्विस.,१६.२१,७१ ३. Sharma, Dasharatha : Rajasthan Through the Ages, Bikaner, 1966, p.309 ४. Majumdar, R.C. : The History & Culture of the Indian People : The Classical Age, Bombay, 1954, p. 353 सौन्दरनन्द,२४५ ६. रघुवंश,५.२८,६.३३ ७. द्रष्टव्य - वासुदेव शरण अग्रवाल : हर्षचरित - एक सांस्कृतिक अध्ययन, पटना, १९६४,परिशिष्ट - २,पृ.२२१-२४ तथा रामशरण शर्मा : भारतीय सामन्तवाद (अनु. - आदित्य नारायण सिंह),दिल्ली,१९७३., पृ.१-२ ८. द्रष्टव्य - द्विस.,१८.१३७
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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