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________________ २ सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना 1 हैं। इस प्रकार द्विसन्धान-महाकाव्य के शिल्पवैधानिक विकास की कड़ी महाकाव्य परम्परा के उद्भव एवं विकास की प्रवृत्तियों से जुड़ी हुई है । द्विसन्धान-महाकाव्य अपने पूर्ववर्ती रघुवंश, कुमारसम्भव आदि अलंकृत शैली के महाकाव्यों के समान जहाँ कथानक स्रोत के रूप में रामायण की कथा को ही अंगीकार करती है अथवा सप्तसन्धान की कथा जैन पुराणों से गृहीत है, वहाँ दूसरी ओर इन कृतियों का काव्यक्रीड़ा अथवा आलंकारिक चमत्कृति को प्रश्रय देना मुख्य प्रयोजन रहा है । इस प्रकार समाजशास्त्रीय दृष्टि से सामाजिक आदर्श स्थापनाहेतु निर्मित महाकाव्य विकास के विकसनशील महाकाव्य इन अलंकार प्रधान महाकाव्यों के उपजीव्य हैं । द्विसन्धान-महाकाव्य इस दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जो मूलत: महाकाव्य के परम्परा से जुड़ा होने पर भी अपने युग की काव्य चेतना को श्लेष - काव्य का स्वरूप देकर प्रस्तुत करता है। इस प्रकार पुरातन और नवीन काव्य मूल्यों का सामंजस्य प्रस्तुत करते हुए इस महाकाव्य के लेखक ने एक ऐसी कृति का प्रणयन किया, जिसमें साहित्य का समाजधर्मी पक्ष तो सबल है ही, समसामयिक काव्यधर्मी पक्ष का भी उसमें प्रतिनिधित्व हुआ है। इसी तथ्य का विशदीकरण इस अध्याय में किया गया है, जिसमें द्विसन्धान - महाकाव्य के सन्दर्भ में महाकाव्य परम्परा व इतिहास की पृष्ठभूमि का संक्षेप में सर्वेक्षण प्रस्तुत करते हुए सन्धानात्मक काव्य शैली की उल्लेखनीय विशेषताओं को स्पष्ट किया गया है भारतीय महाकाव्य का विकास वेदकालीन इतिहास - पुराण-आख्यान की परम्परा से माना जाता है । इसका आरम्भिक रूप वैदिक आख्यानों और दानस्तुतियों में दृष्टिगोचर होता है । सामान्यतया महाकाव्य शब्द का प्रयोग आजकल दो अर्थों में होने लगा है, एक-अंग्रेजी के 'इषिक' शब्द के अर्थ में और द्वितीय - प्राचीन आलंकारिक आचार्यों द्वारा प्रयुक्त 'सर्गबद्ध काव्य' के अर्थ में । साधारणत: यूरोपीय पण्डितों ने भारतीय 'महाकाव्य' को 'इपिक' कहकर केवल दो ग्रन्थों की चर्चा की है— महाभारत की और रामायण की । १ १. डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी : संस्कृत के महाकाव्यों की परम्परा, 'आलोचना', अंक १, दिल्ली,१९५१,पृ.९
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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