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________________ रस-परिपाक १२९ रूप में बीच दबे हुए स्तनचक्र को प्रेमी तथा प्रेमिका दोनों के आक्रमण सहने पड़ रहे थे । उपर्युक्त दोनों उद्धरणों में स्थायी भाव रति है । प्रेमी तथा प्रेमिका परस्पर आलम्बन विभाव हैं। प्रेमिका के स्तन उद्दीपन विभाव हैं। हर्ष, उन्माद आदि व्यभिचारी भाव हैं | आलिङ्गन अनुभाव है । रोमाञ्च, स्वेदादि सात्विक भाव आक्षिप्त हैं । इनके सहयोग से सम्भोग शृङ्गार आस्वादित हो रहा है । अधर क्षत उदधमदिव तत्पराभिमर्शादधरयुगं व्यतिचुम्बितं स्वमङ्गम् । अधरितगतयो गृहीतमुक्ताः समुपचिता हि सह व्रणैः स्फुरन्ति ॥ १ प्रस्तुत उद्धरण में धनञ्जय वन-विहार करते हुए प्रेमी युगलों के आलिङ्गन, चुम्बन के मध्य प्रेमिका के ओष्ठों पर हुए दन्तक्षतों का वर्णन करते हैं। प्रेमी युगलों 1 गाढ़ आलिङ्गन, सतत चुम्बन से ओष्ठों का आकार फूला हुआ-सा हो गया है । जब प्रेमी ने प्रेमिका का प्रगाढ़ चुम्बन लेकर, उसके ओष्ठों को दबाकर छोड़ा तो उनमें दन्तक्षत थे और वे फड़क रहे थे । यहाँ रति स्थायी भाव है । प्रेमी व प्रेमिका परस्पर आलम्बन विभाव हैं । उपवन, वन-विहार, प्रेमिका की चेष्टाएं उद्दीपन विभाव हैं । हर्ष, उन्माद, चपलता, औत्सुक्य आदि व्यभिचारी भाव हैं। आलिङ्गन, चुम्बन आदि अनुभाव हैं । रोमाञ्च, स्वेदादि सात्विक भाव आक्षिप्त हैं, जिनसे सम्भोग शृङ्गार का परिपाक स्पष्ट हो रहा है 1 नखक्षत घनयोः स्तनयोः स्मरेण तन्व्याः परिणाहं परिमातुमुन्नतिं च । रचितेव रसेन सूत्ररेखा नखलेखा विरराज कुङ्कुमस्य ॥ २ 1 प्रस्तुत प्रसंग में कामकेलिरत नायिका के वक्षस्थल का अतिहृदयग्राही चित्रण किया गया है । नायिका के स्तनों पर लगी हुई नखक्षत की रेखाएं ऐसी प्रतीत हो रही थीं जैसे कामदेव ने नायिका के कठोर और सघन स्तनों की गोलाई और ऊँचाई नापने के लिये किसी वास्तुविद् की भाँति कुङ्कुम से रंगे सूत के द्वारा रेखाएं खींच दी हों । यहाँ स्थायी भाव रति है । प्रेमी व प्रेमिका परस्पर आलम्बन विभाव 1 १. द्विस., १५.२० २. वही, १७.७९
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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