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________________ रस-परिपाक १२१ अवलोकितुं हरिविघातमसह इव गन्तुमुद्यतः । संख्यरुधिरमवलोक्य चिरं स मदादपप्तदिव तीव्रगुः सदा ॥ वीर रस के परिपाक का मर्मस्पर्शी स्थल वहाँ है, जहाँ प्रतिनायक अपने साहस की पराकाष्ठा दिखाते हुए नारायण से कहता है-“मैं निरस्त्र हूँ ऐसा मत समझो, क्योंकि मैं हाथ के द्वारा ही तुम्हारे शस्त्र को बेकार कर दूंगा। अपने चक्र को छोडिए। मैं करतल-प्रहार से ही उसे तोड़ देता हूँ"। तदन्तर मन्दिरांचल के पार्श्व से सुनायी देने वाली भेरियों तथा मङ्गलपाठियों द्वारा किये गये गुणगान के मध्य नारायण ने रावण अथवा जरासन्ध पर चक्र-प्रहार किया। प्रतिनायक ने अपना दु:साहस नहीं छोड़ा, किन्तु चक्र ने उसके शिर को आक्रान्त किया तथा ग्रीवा पर हुए आघात से शिर कट गया मा ज्ञाप्यस्मि निरस्त्रोऽहं हस्तेनास्त्रं हि मुच्यते । ततस्तलप्रहारेण मुञ्चास्त्रं क्राथयामि ते ॥ इत्याकर्ण्य तमुत्साहं साहंकारं सुरावली। सुरावलीला साशंसं साशं संप्रशशंस तम् ।। शौर्यं ह्रीश्च कुलीनस्य स्वे नुः सद्मार्गलाञ्छनम् । वस्वितीवोक्तये भेर्य: स्वेनु: सद्मार्गलाञ्छनम् । गाथका गाथकाबन्धैः सञ्जगुः स्थाम सञ्जगुः । राशिराशिश्रवन्नाम वन्दिनां गुणवन्दिनाम्॥ देवैर्विमानशालायामास्थितैर्मत्तवारणीम् । रणरङ्गस्तयोस्तत्र पूर्वरङ्ग इवाभवत् । नामोचितेन चक्रान्तं दोष्णवामुचद्धरिः । नामोचि तेन च क्रान्तं धैर्यं जगति वैरिणा॥ तेनार्जितात्मशिरसा श्री: कथं सा बहिः शिरः । इतीवोत्सृज्य सोऽन्याङ्गमुत्तमाङ्गमतोऽग्रहीत् ।। ग्रीवा हते क्षरत्तन्त्री वैरराजे समन्ततः । १. वही,१७.१९-२१
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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