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________________ ११० सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य- चेतना छन्द का प्रयोग करना चाहिए । द्विसन्धान- महाकाव्य में श्रव्य व श्रुतिमधुर छन्दों का संयोजन हुआ है । पूर्ण सर्ग में एक छन्द को तथा सर्गान्त में बदलकर भिन्न छन्द को प्रयोग करने की प्रथा का निर्वाह सम्पूर्ण महाकाव्य में नहीं हो पाया है । प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, नवम तथा अष्टादश सर्गों में ही इस प्रकार का प्रयोग हो पाया है । १८. भाषा भामह महाकाव्य में आलङ्कारिक भाषा का प्रयोग उचित समझते हैं । उनको महाकाव्य में ग्राम्य-शब्दों का प्रयोग अभिमत नही है ।३ दण्डी महाकाव्य में ऐसी भाषा का प्रयोग उचित समझते हैं, जिससे महाकाव्य समस्त लोक का रञ्जन कर सके । इसका अभिप्राय यह है कि महाकाव्य की भाषा सरल और बोधगम्य होनी चाहिए, तभी उससे समस्त लोक का रञ्जन हो सकेगा । द्विसन्धान- महाकाव्य द्व्यर्थी-काव्य है, अतएव भामह की मान्यता के अनुरूप इसमें आलङ्कारिक भाषा का प्रयोग करना कवि के लिये अतिसुगम हो गया है । आलङ्कारिक होने के साथ-साथ इसकी भाषा अग्राम्य शब्दावली से युक्त है । दण्डी के महाकाव्य-लक्षण के सन्दर्भ में इस महाकाव्य की समीक्षा करें तो कहा जा सकता है कि इसमें समस्तलोकरञ्जक अर्थात् सरल तथा बोधगम्य भाषा का भी प्रयोग हुआ है । 4 द्विसन्धान-महाकाव्य में अत्यधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि एक ओर तो महाकवि धनञ्जय ने समस्तलोकरञ्जक अर्थात् सरल तथा बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है, तो दूसरी ओर आलङ्कारिकता के नाम पर एक (अन्तिम) सर्ग में दुष्कर चित्रबन्ध की योजना भी की है। इस प्रकार के असाधारण भाषा प्रयोग की क्षमता से प्रभावित होकर ही सम्भवत: हेमचन्द्र और वाग्भट ̈ प्रभृति परवर्ती १. काव्या., १.१८-१९ २. विशेष द्रष्टव्य- प्रस्तुत ग्रन्थ, अध्याय ७ ३. 'अग्राम्यशब्दमर्थञ्च सालंकारं सदाश्रयम् ॥', का. भा., १.१९ ४. काव्या., १.१९ द्रष्टव्य - द्विस., १५.३६-४० ५. ६. ‘दुष्करचित्रादिसर्गत्वम्',अलं.चू, पृ.४५७ ७. 'दुष्करचित्राद्येकसर्गाङ्कितम्', का.वा., पृ. १५
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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