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________________ सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना अर्थयुक्त, माधुर्यादि गुणों से समन्वित, अलंकार - शास्त्र और व्याकरण के नियमों से युक्त होती है, वही सज्जनों को प्रमुदित करती है' ।' धनञ्जय ने सन्धान-काव्य में काव्योचित गुणों को आवश्यक मानकर उनका प्रयोग भी किया है, इसीलिए अपने काव्य को 'द्विसन्धान-महाकाव्य' संज्ञा से अभिहित किया है । ९४ द्विसन्धान-महाकाव्य का महाकाव्यत्व काव्य के विविध रूपों में महाकाव्य का स्थान सर्वोपरि है । 'महत्' विशेषण के योग से काव्य (महाकाव्य) की व्यापकता की परिधि अत्यन्त विस्तृत हो जाती है, जो महाकाव्य की महत्ता की द्योतक है। महाकाव्य में अन्य काव्यांगों की अपेक्षा जीवन को अधिक विस्तृत फलक पर चित्रित किया जाता है । वह जीवन के समग्र रूप की अभिव्यक्ति करता है । उसमें जातीय जीवन विविध रूपों में प्रकट होता | विशाल कथा - पट पर भावनाओं के अनेक रंग भरे जाते हैं। महाकाव्य का माध्यम अपेक्षाकृत अधिक बृहत् होने के कारण उसमें जीवन का सर्वांगीण रूप अभिव्यक्त होता है और समस्त मानवता, समाज, संस्कृति, प्रकृति और चरित्र के विविध प्रकार उसमें मूर्त्त होते हैं । विस्तृत परिधि में महाकाव्य प्रमुख पात्रों के साथ अनेक गौण और सहायक पात्रों के चरित्र का विश्लेषण भी प्रस्तुत करता है । मानव जीवन के अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग दोनों ही महाकाव्य में प्रतिबिम्बित होते हैं । महाकाव्य चाहे किसी युग में भी लिखे गये हों, उन्होंने युग-चेतना के स्वर को उभार कर प्रस्तुत किया है। इस प्रकार सामाजिक चेतना के प्रति समर्पित महाकाव्य-विधा पुरातन और नवीन समाजधर्मी मूल्यों को अपने कलेवर में समेटती आयी है । भारतीय साहित्य के इतिहास में एक ओर नवीनातिनवीन महाकाव्य लिखे गये और दूसरी ओर उसकी नवीन परिभाषाएं बनती रहीं । काव्यशास्त्रियों ने महाकाव्य-लक्षण निर्धारित करते समय अपने समक्ष किसी-न-किसी महाकाव्य को आदर्श रखा । ये लक्षण उस काल के महाकाव्यों के लिये तो मान्य रहे, किन्तु १. 'चिरन्तने वस्तुनि गच्छति स्पृहां विभाव्यमानोऽभिनवैर्नवप्रियः । रसान्तरैश्चित्तहरैर्जनोऽन्धसि प्रयोगरम्यैरुपदंशकैरिव ॥ स जातिमार्गो रचना च साऽऽकृतिस्तदेव सूत्रं सकलं पुरातनम् । विवर्त्तिता केवलमक्षरैः कृतिर्न कञ्चुकश्रीरिव वर्ण्यमृच्छति ॥ कवेरपार्थामधुरा न भारती कथेव कर्णान्तमुपैति भारती । तनोति सालङ्कृतिलक्ष्मणान्विता सतां मुदं दाशरथेर्यथा तनुः ॥', द्विस., १.३-५
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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