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________________ ९२ सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना चला गया । कवियों ने किन्हीं दो पौराणिक अथवा ऐतिहासिक कथाओं को आधार बनाकर भी अनेक चरित काव्यों का सृजन किया । निष्कर्ष 1 इस प्रकार हम देखते हैं कि संस्कृत भाषा की अनेकार्थक प्रवृत्तियाँ सन्धानकाव्य का मूल हैं । धनञ्जय ने सर्वप्रथम द्विसन्धान- महाकाव्य का प्रणयन कर एक ऐसा अभूतपूर्व काव्य प्रयोग किया है जो सहृदयों के साथ-साथ समीक्षकों को भी आश्चर्यचकित कर देता है । काव्य के युगीन मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में द्विसन्धानमहाकाव्य रामायण एवं महाभारत जैसी लोकप्रसिद्ध कथाओं को अपने महाकाव्य की आधार कथा के रूप में चुनता है । रामकथा तथा पाण्डवकथा के जाल से बुने इस महाकाव्य के कलेवर में वे सभी वर्ण्य विषय समाविष्ट कर लिये गये हैं जिनकी एक महाकाव्य में आवश्यक रूप से अनिवार्यता होती है । तत्कालीन काव्यशास्त्र की मर्यादाओं के अन्तर्गत द्विसन्धान-महाकाव्य का इतिवृत्त कृत्रिम होने के बाद भी काव्य-चातुरी की स्वाभाविकताओं से युक्त है । रामकथा और पाण्डवकथा के विविध कथानकीय आयाम काव्य के सन्धानात्मक प्रयोग वैचित्र्य से समानान्तर हो जाते हैं । निश्चित रूप से यह काव्य- चमत्कार का अद्भुत प्रयोग है । परन्तु इस चमत्कारपूर्ण काव्य-प्रयोग के लिये कवि को कितना प्रयास करना पड़ा होगा उसका सहज में अनुमान लगाना भी कठिन है। दोनों समानान्तर कथानकों को एकसाथ समेटने में जन्म, विवाह, वनगमन आदि की घटनाओं को जहाँ एकसाथ वर्णित करके कार्य साधा गया है वहाँ दूसरी ओर कवि ने विशेषण- विशेष्य भाव से तथा उपमान-उपमेय भाव से भी शब्द प्रयोग करते हुए सन्धान- काव्य को सार्थकता प्रदान की है । अलंकार - विन्यास विशेषकर श्लेष आदि शब्दालंकारों का औचित्य किस सीमा तक हो सकता है द्विसन्धान - महाकाव्य उसका एक निदर्शन है । यमक, चित्रालंकार आदि अलंकारों के शास्त्रीय भेद-प्रभेदों की जितनी भी काव्यशास्त्रीय संभावनाएं संभव हैं, कवि धनञ्जय ने उनका भरपूर लाभ उठाते हुए सन्धानात्मक काव्यविधा को दिशा-निर्देशक आयामों से संजोया है । इन्हीं अनेक विशेषताओं एवं चमत्कारपूर्ण अलंकार- योजनाओं से परिपुष्ट सन्धान-काव्य शैली परवर्ती कवियों के लिये अत्यधिक प्रेरणादायक सिद्ध हुई है। जिसके परिणामस्वरूप धनञ्जय को सन्धान-काव्य का पिता कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी ।
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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