SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (हाल पंन्यासप्रवर) श्री मेरुविजयजी म. और पू. मुनिवर्य (हाल पंन्यासजी) श्री देवविजयजी म. का विशेष समागम हुआ । इस समागमसे भाई हसमुख के दिलमें सोया हुआ वैराग्यभाव जाग ऊठा । पू. महाराजश्री के उपदेशने आत्मा के ऊपर छाई हुई मोहकी जाल काट दी। अब भाई हसमुख इस असार संसार को छोड़कर दीक्षित बनने की बातचीत करने लगा । किन्तु इनकी छोटी उम्र के कारण मातापिताने दीक्षा की अनुमति नहीं दी । तब भाई हसमुखने एक वर्ष तक मातापिता की अनुज्ञा से पू. महाराजश्रीकी साथ रहकर पंच प्रतिक्रमण, चार प्रकरण, चार कर्मग्रन्थ और संस्कृत के दो भाग आदि का अध्ययन किया। __ जब भाई हसमुखने वारंवार मातापिता के पास दीक्षा के लिये अनुमति मांगी तब उनका उत्कट वैराग्य भाव और दृढनिश्चय को देखकर मातापिता वगेरहने दीक्षा दिलवाने का निर्णय किया । बाद कोठ (गांगड) में सं. २००५ के फाल्गुन वदि-५ (गुजराती महा. व. ५) गुरुवार को विद्वद्वर्य पूज्य मुनिप्रवर श्री मेरुविजयजी म.के करकमलोंसे भाई हसमुखने मातापिता और इन्दुबेन, धनसुख, हंसा, प्रवीण वगेरेह अपने विशाल कुटुम्बादिको छोड़कर बडा महोत्सवके साथ दीक्षा ली । इनका 'हेमचन्द्रविजयजी' नाम रखकर पूज्य मुनिवर्य श्री देवविजयजी म. के शिष्य बनाये गये । आपकी बुद्धि प्रशंसनीय है । इतनी छोटी वयमें पाणिनीय व्याकरण, प्रौढमनोरमा, महाभाष्य, मुक्तावली, पञ्चलक्षणी आदि न्याय व्याकरण और साहित्य के ग्रन्थों का सुन्दर अभ्यास किया है और अभी आप अध्ययन में आसक्त है। __ आपके सांसारिक कुटुम्ब की धर्माराधना भी सराहनीय है। आपकी बहन हंसाने तेरह वर्ष की लघुवय में हमारे सादडी गाँव में सं. २००९ चैत्र व. २ (गु.फा. व. २) को सिद्धांतवाचस्पति पूज्य श्रीकीर्तिकल्लोलकाव्यम् 169
SR No.022616
Book TitleVividh Haim Rachna Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy