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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र ] न मे निवारण अस्थि, छवित्ताणं न विजइ । अहं तु अग्गिं सेवामि, इह भिक्खू न चिंतए ॥७॥ उसिगपरियावे, परिदाहेण तजिए । प्रिंसु वा परियावरणं, सायं नो परिदेवए ॥८॥ उपहाहितत्तो मेहावी, सिगाणं नो वि पत्थर ।। गायं नो परिसिंवेजा, न वीरजा य अप्पयं ॥ ६॥ पुट्ठो य दंसमसएहिं, समरे व महामुणी। नागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं ॥ १० ॥ न संतसे न वारेजा, मणं पि न पओसए । उवेहे न हणे पाणे, भुंजन्ते मंसमोणियं ॥ ११ ॥ परिजुरणेहि वत्येहिं, होक्खामि त्ति अचेलए । अदुवा सचेलए होक्ख, इह भिक्खू न चिंतए ।। १२॥ एगयाऽचेलए होइ, सचेले आवि एगया। एयं धम्म हियं नच्चा, नागी नो परिदेवए ।। १३ ॥ गामाणुगाम रीयन्तं, अणगारं अकिंचणं । अरई अणुप्पवेसेन्जा, तं तितिक्खे परीसह ॥ १४ ॥ अरई पिट्टयो किच्चा, विरए आयरक्खिए। धम्मारामे निरारम्भे, उवसंते मुणी चरे ॥ १५ ॥ संगो एस मरपूसाणां, जाओ लोगम्प्रि इथिओ। जस्स एया परिन्नाया, सुकडं तस्ल स.मरा ॥ १६ ॥ एवमादाय मेहावी, पङ्कभूयाउ इत्थिरो। नो ताहिं विणिहम्मेजा, चरेजत्तगवेसए ।। १७ ।। एग एव चरे लाडे, अभिभूय परीरहे । गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए ॥ १८ ।। १. नाभिपत्थए । २. अभिभवे । ३. एचमाणाय मेहावी जहा एया लहुस्सगा।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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