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________________ दसवेलिय गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी जिणवयनिउणे' अभिगमकुसले | अज्भयण ९-४ धुणिय रयमले पुरेकडं भासुरमउलं गई गए ||१५|| ति बेमि ॥ ॥ एवमज्झयणस्स विण्यसमाहीए तो उद्देस समत्तो ॥ ॥ णवममज्झयणं--चउत्थो उद्देो ॥ सुयं मे आउ ! तेगं भगवया एवमक्खायं - इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विण्यसमाहिट्ठाणा परणत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणय समाहिट्ठाणा पण्णत्ता ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विण्यसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता तं जहा - विण्यसमाही, सुयसमाही, तवसमाही, आयारसमाही | विणए सुए तवे य आयारे णिच्च पंडिया | अभिरामयंति अप्पा जे भवंति जिइंदिया ॥१॥ चव्विा खलु विण्य समाही भवइ, तं जहा - अणुसासि ज्जन्तो सुस्सूसइ, सम्मं संपडिवज्जह, वेयमाराहयइ, न य भवर अत्तसंपग्गहिए चउत्थं पयं भवइ । भवइ य पत्थ सिलोगो: पेहेइ हियाणुसासणं सुस्सूसइ तं च पुणो हिट्टए । न य माणमपण मज्जइ वियणसमाही श्राययट्टिए ||२|| चव्विा खलु सुयसमाही भवइ, तं जहा - सुर्य मे भविस्सर ति श्रज्झायव्वं भवइ, एगग्गचित्तो भविस्सा मि १-मय० । २ वए
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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