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________________ ૪૬ दसवेलियसुत्तं नीय सेज्जं गई ठाणं नीयं च आसणाणि य । नीयं च पाए वंदेजा नीयं कुजा य अंजलिं ॥ १७ ॥ संघट्टत्ता कारणं तहा उवहिणामवि । खमेह अवराहं मे वएज न पुणेो त्तिय ॥ १८ ॥ दुग्गओ वा पश्रएणं चोइओ वहद्द रहं । एवं दुबुद्धि किच्चा वृत्तो वृत्तो पकुव्व ॥ १६ ॥ आलवंते लवते वा न निसेज्जाए पडिस्सुणे | मोत्तू आसणं धीरो सुस्साए पडिस्सुणे ॥ २० ॥ कालं छंदोक्यारं च पडिले हित्ताण हेउहिं । तेहिं तेहि उपाएहि तं तं संपडिवायए ॥ २१ ॥ विवत्ती अविशीयस्स संपत्ती विशियरस य । जस्सेयं दुह नायं सिक्ख से अभिगच्छइ ॥ २४ ॥ जे यावि चण्डे मइइइढिगारवे पिसु नरे साहस हीणपेसणे । अधिस्त्रे विणए अकोविए असंविभागी न हु तस्स मोक्खो || २३ || सिवन्ती पुरा जे गुरूणं सुत्थम्मा विणमि कोविया । अज्भयण ६-३ तरितु ते श्रहमिणं दुरुत्तरं खवि कम्मं गरमुत्तमं गया ॥ २४ ॥ त्ति बेमि ॥ णवमअज्झयणम्स विण्यसमाहीए विप्रो उद्देसगो समत्तो ॥ ॥ ममायणं - तो उद्देो ॥ आयरियग्गमिवाहियग्गी सुस्सूसमा पडिजागरिजा । आलोयं इंगियमेव नच्चा जो छन्दमाराहयई स पुजो ॥ १ ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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