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________________ ३८ दसवेप्रालियसुत्तं अज्झयण ८ उच्चारं पासवणं खेल सिंघाणजल्लियं । फासुयं पडिलेहित्ता परिट्ठावेज्ज संजए ॥ १८ ॥ पविसितु परागारं पाणट्ठा भोयणस्स वा। जयं चिट्टे मियं भासे न य रूवेसु मणं करे ॥ १६ ॥ बहुं सुणेइ करणेहिं बहुं अच्छीहिं पेच्छइ । न य दिटुं सुयं सव्वं भिक्खू अक्खाउमरिहइ ॥२०॥ सुयं वा जइ वा दिटुं न लवेजोवघाइयं । न य केण उवाए गिहिजोगं समायरे ॥ २१ ॥ निट्ठा रसनिज्जूढं भद्दगं पावगं ति वा । पुट्ठो वा वि अपुट्ठो वा लाभालाभं न निदिसे ।।२२।। न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उंछं अयंपिरो । अफासुयं न भुंजेजा कीयमुद्देसियाहडं ।। २३ ॥ सन्निहिं च न कुवेजा अणुमायं पि संजए । मुहाजीवी असंबद्ध हवेजा जगनिस्सिए ॥ २४ ॥ लूहवित्ती सुसंतुट्टे अप्पिच्छे सुहरे सिया । अासुरत्तं न गच्छेज्जा सोच्चा जंजिणसासणं ॥२५॥ करणसोक्खेहि सद्देहिं पेम नाभिनिवेसए । दारुण ककसं फासं काएण अहियासए ॥ २६॥ खुहं पिवासं दुस्सेज्ज सीउराहं अरई भयं । अहियासे अव्वहिओ देहदुक्ख महाफलं ॥ २७ ।। अत्थंगयंमि आइच्चे पुरस्था य अणुग्गए। आहारमाइयं सव्वं मणसा वि न पत्थए ॥२८॥ अतिविणे अचवले अप्पभासी मियासणे । हवेज्ज उयरे दन्ते थोवं लद्धं न खिसए ॥२६॥ न बाहिरं परिभवे अत्ताणं न समुक्कसे । सुयलाभे न मज्जेज्जा जच्चा तवसिलबुद्धिए ॥ ३० ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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