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________________ अज्झयण ७ दसवेलियसुत्तं ३१ धुति पावाई पुरेकडाई नवाई पावाई न ते करेंति ॥ ६८ ॥ सश्रवसंता अममा अकिंचणा सविजविज्जाणुगया जसंसि । उसने विमले व चंदिमा सिद्धिं विमाणाई उर्वेति ताइणेो ॥ ६६ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ छठ्ठेमहिल्लियायारकहज्यां समत्तं ॥ ॥ वक्कसुद्धी नामं सत्तममज्झयणं । चउराहं खलु भालागं परिसंखाय परणवं । दोहं तु वियं सिक्खे दो न भासेज सव्वसा ॥ १ ॥ जा य सच्चा श्रवत्तव्वा सच्चामोसा य जा मुसा । जाय बुद्धेहिणाइरणा न तं भासेज पन्नवं ॥ २ ॥ असच्चमोसं सञ्चं च अणवज्जमकक्कसं । समुहमसंदिद्धं गिरं भासेज पन्नवं ॥ ३ ॥ एयं च अट्टमन्नं वा जं तु नामेइ सासयं । सभासं सच्चमोसं पि तं पि धीरो विवज्ञए ॥ ४ ॥ वितह पि तहामुन्तिं अं गिरं भासए नरो । तम्हा सो पुट्ठो पावेणं किं पुरा जो मुसं वए ॥ ५ ॥ तम्हा गच्छामो वक्खामो अमुगं वा णे भविस्सइ । अहं वा णं करिस्सामि एसेो वा णं करिस्सइ ॥ ६ ॥ एवमाइ उ जा भासा एस्सकालम्मि संकिया । संपयाईयम वा तं पि धीरो विवज‍ ॥ ७ ॥ अमिय कालम्मि पच्चुप्पन्नमणा गए । जमङ्कं तु न जाणेजा एवमेयं ति नो वए ॥ ८ ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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