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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र | तत्थोवभोगे वि किले सदुक्ख. निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ||३२|| एमेव रूवनि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्टचित्तो य चिणाङ्ग कम्मं, [ १४३ जं से पुणो होइ दुहं वित्रागे ॥ ३३ ॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएस दुक्खोहपरंपरे । न लिप्पए भवभे वि सन्तो, 1. जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ३४ ॥ सोयरस सद्दं गड वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दोसहेउं अमरणुन्नमाहु, समोय जो तेसु स वीयरागो ॥ ३५ ॥ सद्दस्स सोयं गहणं वयन्ति, सोयरस सद्दं गहां वयन्ति । गगस्स हेउं सममुन्नमाहु, ... दोसरस हेउं श्रम णुन्नमाहु || ३६ ॥ सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, कालिये पावर से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुळे, सहे प्रति समुबे मच्धुं ॥ ३७ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं, सिक्ख से उ उवेइ दुक्खं । दुदन्तदोसेण सएण जन्तू, व किश्चि सो अवरभई से ॥ ३८ ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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