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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१३७ एगवीसाए सबले, बावीसाए परीसहे।. ... जे मिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ।। १५॥ तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु अ। जे भिक्खू जयई निञ्च, से न अच्छइ मण्डले ॥ १६ ॥ पणुवीसभावणासु, उद्देमेसु दसाइणं । जे भिक्खु जयई निश्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १७ ॥ अणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निश्चं, से न अच्छा माडले ॥ १८ ॥ पावसुयपसंगेसु, मोहठाणेसु चेव य । जे भिकन जयई निश्चं. से न अच्छइ मण्डले ॥ १६ ॥ सिद्धाइगुणज गेसु, तेत्तीसासायणासु य । - जे मिक्यू जयई निश्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ २० ॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक्खु जयई सया। .. खिप्पं सोसव्वसंसारा, दिप्पमुच्चइ पण्डिओ॥२१॥ त्ति बेमि || चरणविही समत्ता ॥ ३१ ॥ ... ॥अह पमायहाणं बत्तीसइमं अज्झयणं ।। अश्चन्तकालस्स समूलगस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो प्रमोक्खो। तंभासओमे पडिपुराणचित्ता, सुणेह एगन्तहिय' हियत्थं ॥१॥ नाणस्स सवस्स पगामणाए, . अन्नाणमोहस्स विवजणाए । . . - d e - - - - . .. १. एगग्गहियं । २. सव्वस्स।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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