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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १२६ वयगुत्तयाप णं भन्ने ! जीवे किं जणयइ ? व० निव्विया - रतं जणयइ । निश्चियारे गं जीवे वइगुत्ते अज्झष्वजोग साहणजुत्ते यावि विहरs || ५४ ॥ कायगुत्तयाए गं भन्ते ! जीवे किं जयइ ? का० संवरं जणयइ | संवरेगं कायगुत्ते पुणो पावासव निरोहं करेइ || ५५ || मणसमाहारण्याए गं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? म० एगग्ग जणयइ । एगग्गं जगइत्ता नागपज्जवे जरण्यइ | नाणपज्जत्रे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निजरेइ || ५६ ।। वयसमाहरणयाए गं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? व० वयसाहारणदंसणपजवे विसोहेइ । वयसाह | रणदंसणपजवे विसोहित्ता सुलहबोहियां निव्वत्ते, दुल्लइ बोहियांत निजरेइ ॥ ५७ ॥ कायसमाहारख्या गं भन्ते ! जीवे किं जरण्यइ ? का० चरित्तपज्जवे विसोहेइ । चरित्तपजवे विसोहित्ता अहक्खायचरितं विसोहेर । अहक्खायचरितं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परि निव्वाइ, सञ्चदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ५८ ॥ नागसंपन्नयाए भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? ना० जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ | नागसंपन्ने जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणस्सह । जहां सूई सत्ता पडिया न विएस्सइ | तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्स || नागविण्यतवचरितजोगे संपाउणइ ससमयपर समयविसारए य संघाय णिजे भवइ ॥ ५६ ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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