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[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
तुम्भे समत्था उत्तु, परमप्पाणमेव य । तभग्गहं करेह म्हं, भिक्खेणं भिक्खुउत्तमा ॥ ३६ ॥ न कर्ज मज्झ भिक्खेणं, खिष्पं निक्खमसु दिया ! मा भमिहिसि भैयावंट्टे, घोरे संसारसागरे ॥ ४० ॥ उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पइ | भोगी भइ संसारे, अभोगी विष्पमुच्चइ ॥। ४१ ।। उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया । दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गड़ ॥ ४२ ॥ एवं लग्गन्ति दुम्मेह, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्कगोल ॥ ४३ ॥ एवं से विजयघोसे, जयघोसस्स अंतिए । अणगारस्स निक्खन्तो, धम्मं सोच्चा अणुत्तरं ॥ ४४ ॥ खवित्ता पुव्यकम्माई, संजमेण तवेरा य । जय घोसविजय घोला, सिद्धिं पत्ता श्रणुत्तरं ||४५|| ति बेमि ॥ जन्नजं समत्तं ॥
|| अह सामायारी गाम छवीसइमं अज्झयणं ॥ सामायारिं पवक्वासि सच्चदुक्ख विमोक्खं । जं चरित्ताण निग्गन्या, तिग्रा संसारसागरं ॥ १ ॥ पढमा अवस्सिया नाम, विझ्या य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छा ॥ २ ॥ पंचमी छन्दणा नामं, इच्छाकारो य छट्टओ । सत्तमो मिच्छुकारो य, नहक्कारो य अट्टमो ॥ ३ ॥ भुट्टारां च नवमं, दसमा उवसंपदा | एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ॥ ४ ॥ १. भयावत्ते दोहे |