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________________ १०२ ] [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासन्ति जन्तु । श्रद्ध से कह वट्टन्ते, तं न नाससि गोयमा ? ॥ ६० ॥ जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्टिया | ते सबमे देइया मर्ज, तो न नस्सामहं मुणी ।। ६१ ।। मग्गेय इइ के बुत्ते ? केसी गोयमनव्वरी । के सिमेवं बुवंत तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ६२ ॥ कुप्पवयपासण्डी, सच्चे उम्मग्वपट्टिया | सम्प्रग तु जिराक्वा, एस मग्गे हि उत्तमे || ६३ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इपो । अन्नो वि संसओ मज्भ, तं मे कहसु गोयमा || ६४ महा उदगवेगेण, बुज्झमायाण पारिणं । सरणं गई इट्टा य, दीव के मन्नसि मुणी ? श्रत्थि एगो महादीवो, वारिज् महालओ । महा उदगवेगस्स, गई तत्थ न विजइ ॥ ६६ ॥ दीवे य इइ के वृत्त ? केसी गोयमन्यवी । के सिमेवं बुवंत तु. गोयमो इरामब्बवी ॥ ६७ ॥ जरामरणवेगेणं, वुज्झना परिंग | धम्म दीवो पट्टा, गई रुरणमुत्तमं ॥ ६७ ॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ६६ ॥ अरागवंसि महोहंसि, नावा विपरिधावइ । ? ।। ६५ ।। जंसि गोयम ! श्रारूढो, कहं परं गमिस्ससि ? ॥ ७० ॥ आउ सविगी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नात्रा, ला उ पारस्ल ग मिणी ।। ७१ ॥ १. सस्साविणो ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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