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________________ ७४ ] [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र नन्दगे सो उपासाए, कीलए सह इत्थिहिं । देवो दोगुन्दागो चेव, निश्चं मुइयमाणलो ॥ ३ ॥ मरियको मितले, पासायालोयराडिओ | आलोएइ नगरस्स, चउक्कतियचच्चरे ॥ ४ ॥ अह तत्थ श्रइच्छन्तं, पासइ समगसंजयं । तवनियम संजमधां, सीलडूढं गुणग्रागरं ॥ ५ ॥ तं पेहई मियापुत्त, दिट्ठीए अििमिसाए उ । कहिं मन्नरिसं रूवं, दिलपुवं मए पुरा ॥ ६ ॥ साहुस्स दरिलणे तस्स, श्रज्भवसाणम्मि सोहणे । मोहं गयहल सन्तस्स, जाइसरणं समुत्पन्नं ॥ ७ ॥ (देवलोग संतो माणुस भवभागो । सचिवासमुप्परे जहं सरह पुराखियं ॥ ) जाईसरणे समुत्पन्न, मियापुत्ते महिड्दिए । सरइ पोराणियं जाई, सामराणां च पुरा कथं ॥ ८ ॥ विसहि अरजन्तो, रजन्तो संजमज्मिय । अम्मापियर मुवागस्म, इमं वयणमव्यवी ॥ ६ ॥ सुयाणि मे पत्र महव्ययाणि, नरपसु दुक्खं च तिरिक्खजोशिसु । निकामो मि महरवाओ, अणुजाण पव्वद्दस्सामि अम्मो ! ॥ १० ॥ अम्प्रताय ! मए भोगा, भुत्ता विसफलोवमा । पच्छा कडुयविवागा, श्रणुबन्धदुहावहा ॥ ११ ॥ इमं सरीरं ऋण असुई असंभवं । अलासवावास सिणं, दुक्ख के साथ भागणं ॥ १२ ॥ असासए सरीरंसि, रई नोवलभामहं । पच्छा पुरा व चश्यत्रे, फेसनिमे ॥ १३ ॥ "
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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