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________________ ६० ] [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र नरनारिं पजहे सया तवस्ती, नय कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ छिन्नं सरं भोमन्त लिक्ख, सुमिगं लक्खणदण्डवत्युविज । अंगवियारं सरस्स विजयं, जे विजाहिं न जीवइ स भिक्खु ॥ ७ ॥ मन्तं मूलं विहिं वेजचिन्त, मण विरेयधूम त्तसिणां । आउरे सरणं तिगिच्छियं च, तं परिम्नाय परिव्वए स भिक्वू ॥ ८ ॥ खत्तियगण उग्गरायपुत्ता, माहणभोइ य विविहा य सिप्पियो । नो हेसिं वयइ सिलोगपूयं, तं परिन्नाय परिव्वएस भिक्खू ॥ ६ ॥ गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा, अपव्वण व संथुया हविजा । इहलोइयफलट्टा, तेसिं जो संधवं न करेइ स भिक्खु ॥ १० ॥ सयणासणपाणभोयणं, विविह खाइमसाइमं परेसिं । अदप पडिसेहिए नियण्ठे, जे तत्थ न पउस्सइ स भिक्वू ।। ११ ।। जं किं चि आहारपाराग, विविध खाइमसाइमं परेसिं लधुं । १. पाणजायं ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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