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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [४७ सशसोयप्पगडा, कम्मा मए पुरा कडा। ते अज परि जामो, किं नु चित्तवि से तहा ? ॥ ६ ॥ सवं सुचिएणं सफ़लं नराण, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं, ____ आया ममं पुराण फलोववेद ॥ १०॥ जाणाहि संभूय ! महाणुभाग. .. . ... महिड्ढियं पुराणफलोववेयं ।। चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं, इड्ढी जुई तस्स वि य प्पभूया ॥ ११॥ महत्थरूवा वयणप्पभूया, गाहाणुगीया. नरसंघमझे । जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, . इहं जयंते समणों' मि जाओ ॥ १२ ॥ उच्चोयए महु कके य बम्मे. पवेडया पावसहा य रम्मा । इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं, : पसाहि पंचालगुणोवत्रेयं ॥ १३॥ नहेहि गीपहि . य वाइएहिं, . नारीजणाहिं परिवारयन्तो । भुजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू ! . ...... मम रोयई पव्वजा हु दुक्ख ॥ १४ ॥ तं पुबनेहेण ... कयारणुराग, ...नराहिवं .कामगुणेसु गिद्ध । S - - - १. सुम्यो । २. ऽविरम्मा। ३.: वित्त । १. पवियारिस्तो।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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