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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] अभावयाणं पडिकूलभासी, प्रभास से किं नु सगासि अम्हं । अवि एवं विएस्सउ अन्नपाणं, न य ग दाहामु तुमं नियण्ठा ! || १६ | समिईहि मज्झ सुसमाहियरुरू, गुत्ती हि गुत्तस्स जिइन्दियस्स । जह मे न दाहित्य अहेलणिज, किमज जन्नाग लहित्थ लाहं ॥ १७ ॥ के इत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्भावया वा सह खण्डिरहिं । एयं खु दण्डेण फलएण हन्ता, कण्ठस्मि घेतूण खरेज जो गं ॥ १८ ॥ अज्भावयां वयं सुत्ता, उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दराडेहि वितेहि कसेहि चेब, समागया तं इसिं तालयन्ति ॥ १९ ॥ रनो तहिं कोसलियरस धूया, भद्दति नः मेरा अणिन्दियंगी । तं पासिया संजय हम्ममा, [ ४१ कुद्धे कुमारे परिनिव्व वेइ ॥ २० ॥ देवाभिओगेण निओइए ار १. फलेगा । दिन्ना मु रन्ना मणसा न भाया । नरिन्ददेविन्द भिवन्दिपूर्ण, जेणम्हि वंता इसिगा स एसो ॥ २१ ॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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