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________________ ४५ उववाई सूत्तं पाई पच्चुवेक्खेह २ त्ता वाहाणाई संपसज्जइ २ त्ता वाहणाई णीणेइ.२ त्ता वाहणाई अप्फालेइ २ त्ता इसे पवीणेइ २ त्ता वाहणाइं समलंकरेइ २ त्ता जाहणाई वरभंडगमंडियाइं करेइ २त्ता वाहणाई जाणाइं जोएइ २ त्ता पोयललुि पोयधरए य समं प्राडहइ २ त्ता वट्टमग्गं गाहेइ २ त्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता बलवाउस्स एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ । तए णं से बलवाउए एयरगुत्तियं प्रामंतेइ २त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवासुप्पिया। चंपं गरि सभितरबाहिरियं श्रासित्त जाव कारवेत्ता एयमाणत्तियं पचप्पिणाहि। ___ तए णं से एयरगुत्तिए बलवाउयस्स एयम8 भाणाए विणएणं पडिमुणेइ २ त्ता चंपं एयरिं सभितरबाहिरियं प्रासित्त जाव कारवेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ। तए णं से बलवाउए कोणियत्स रगणो भंभ. सार पुत्तस्स आभिसेकं हत्थिरयणं पडिकप्पियं पासइ हयगय जाव सरणाहियं पासइ, सुभद्दापसुहाणं देवीणं पडिजाणाइं उवठ्ठवियाई पासा चंपं.
SR No.022612
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherJivan Karyalay
Publication Year1936
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size8 MB
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