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________________ उववाई सूत्तं १०३ दीहं वा हस्सं वा जं चरिमभवे हवेज संठाणं । तत्तो तिभागहीणं सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥४॥ तिणि सया तेत्तीसा धणुत्तिभागो य होइ वोद्धव्वा। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ॥५॥ चत्तारिय रयणीअो रयणितिभागूणिया यबोद्धव्वा। एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमोगाहणा भणिया। ६॥ एका य होइ रयणी साहीवा अंगुलाइ अट्ठ भवे । एसा खलु सिद्धाण जहण्णोगाहणा भणिया ॥७॥ श्रोगाहणाए सिद्धा भवत्तिभागेण होइ परिहीणा । संठाणमणित्थंथं जरामरणविप्पमुकाणं ॥८॥ जत्थ य एगोसिद्धोतत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का । अण्णोण्णसमोगाढा पुठ्ठा सव्वे य लोगंते ॥६॥ फसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहि णियमसा सिद्धो। त वि असंखेनगुणा देसपएसेहिं जे पुट्टा ॥ १० ॥ असरीरा जीवघणा उवउत्ता दसणे य णाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥ ११ ॥ केवलणाणुवउत्ता जाणंहि सबभावगुणभावे । पासंति सव्वो खलु केवलदिट्ठीअणंताहिं ॥१२॥ णवि अत्थिमाणसाणं तंसोक्खंणविय सव्वदेवाणं। जं सिद्धाणं सोक्खं अव्वाबाहं उवगयाणं ॥ १३ ॥
SR No.022612
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherJivan Karyalay
Publication Year1936
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size8 MB
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