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________________ [२८] विजा सेनहे। अन्नेवि पक्खित्ते सेऽवि नटे।एवं पीक्खप्पमाणेसु पक्विपमाणेसु होहीसे उदग बिंदू जेणते मल्लगं रावेहि इत्ति होहीसे उद्ग बिंदू जेणं तं सि मल्लगसि ठाहिति होहीसे उदगबिंदु जेणंतं मल्लगं भरि हिति होहीसे उदग बिंदू जेणंतं । मल्लगं पवाहे हिति एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं अणंतेहिं पोग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरिअं होइ ताहेहुति करेइ । नोचेवणं जाणइ केवि एससद्दाइ । तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस सद्दाइ । तओ अवायं पविसइतओ से उवगयं हवइ । तोणं धारणं पविसइ तओणं धारेइ संखिजं वा कालं असंखिज्ज वा कालं । से जहा नामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सई सुणिज्जा तेणं सद्दोत्ति उग्गहिए नोचेवणं जाणइ के वेस सद्दाइ । तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस सद्दे । तओणं अवायं पवि. सइ लओसे उवगयं हवइ । तओ धारणं पविसइ तओणं धारेइ संखिज्जं वा कालं असंविज्जं वा कालं । से जहा नामए केई पुरिसे अव्वत्तं रूवं पासे ज्जा तेणं रूवत्ति उग्गहिए नो चेवणं जाणइ के वेस रूवत्ति । तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस
SR No.022611
Book TitleNandisutra Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherShah Maneklal Anupchand
Publication Year1923
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size6 MB
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