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________________ (११) अजयं जासमाणो य, पाण नूयाई हिंस॥ बंधई पावयं कम्म, तं से हो कमुयं फलं ॥६॥ कहं चरे कहं चि, कहं-मासे कहं सए ॥ कहं मुंजंतो नासंतो, पावकम्मं न बंधई॥७॥ जयं चरे जयं चिो, जयं-मासे जयं सए ॥ जयं मुंजतो जासंतो, पावकम्मं न बंधई ॥ ७ ॥ सब नूयऽप्पनूयस्स, सम्मं नूयाई पास ॥ पिहियासवस्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधई ॥ ए॥ पढमं नाणं त दया, एवं चिश सब संजए । अन्नाणी किं काही, किं वा नाहीय सेय पावगं ॥१०॥ सोच्चा जाण कहाणं, सोच्चा जाण पावगं ॥ उनयंपि जाणइ सोचा, जं सेयं तं समायरे ॥ ११॥ जो जीवेवि न याणाई, अजीवेवि न याणई॥ जीवाजीवे अयाएंतो, कहं सो नाही य संजमं ॥ १२ ॥ जो जीवेवि वियाणाई, अजीवेवि वियाणई॥ जीवाजीवे वियाणतो, सो दु नाही य संजमं ॥ १३ ॥ जया जीव-मजीवे य, दोवि एए वियाण ॥ तया गई बहुविहं, सब जीवाण जाण ॥१४॥ जया गई बहुविहं, सब जीवाण जाण ॥ तया पुन्नं च पावं च, बंध मोरकं च जाण ॥१५॥ जया पुन्नं च पावं च, बंध मोरकं च जाण ॥ तया निबिंदए नोए, जे दिवे जे य माणुसे ॥१६॥ जया निविदए नोए, जे दिवे जे य माणुसे ॥
SR No.022606
Book TitleDasvaikalik Sutra Mool Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherNathmalji Moolchandji Shah
Publication Year1921
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size4 MB
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