SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला 'कोह लोहा भय हाल माणवो न हासमाणो विगिरं वएज्जा ॥ ५४ ॥ सवक्कसुद्धिं समुपेहिया मुखी गिरं च दुटुं परिवज्जए सया । मिथं अट्ठे अणुवीइ भासए सयाण मज्जे लहइ पसंसणं ॥५५॥ भासाए दोसे य गुणे य जाणिया तीसे य दुट्ठे परिवज्जए सया । छसु संजए सामणि सया जए वपज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ॥ ५६ ॥ परिक्खभासी सुसमाहिईदिए चउकसायावगए अणिस्सिए । स निद्धुणे धुन्नमले पुरेकर्ड अज्झयण द श्राराहए लोगमिां तहा परं ॥ ५७ ॥ ति बेमि ॥ | सत्तमं वक्कसुद्धी अभयणं समत्तं ॥ ॥ श्रायारणिहिनामं ममायणं ॥ आयारपणिहिं लद्धुं जहा कायव्व भिक्खुणा । तं भे उदाहरिस्सामि श्रणुपुवि सुरोह मे ॥ १ ॥ पुढवि - दग - श्रगणि- मारुय - तणरुक्ख-सबीयगा । तसा य पाणा जीव त्ति इइ वुत्तं महेसिणा ||२|| तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं सिया । मणसा कायवक्केण एवं भवइ संजए ||३|| पुढविं भित्ति सिलं लेलुं नेव भिन्देन संलिहे । तिविहे करणजोएण संजए सुसमाहिए ॥ ४ ॥ १. कोहलोहभयसा व माणवी । २. धुत्त० । ३ वाऊ |
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy