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________________ श्रीअनुत्तरोववाइसूत्र] [२४७ दसाणं पढमस्स वगास्स दस अज्झयणा पराणत्ता तं जहाजालि, मयालि, उवयालि । पुरिससेणे य, वारिसेणे य, । दीहदंते य, लट्ठदंते य, वेहल्ले, वेहायसे, अभये-ति कुमारे ॥१॥६।। ____ जइ णं भन्ते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पराणत्ता, पढमस्स णं भन्ते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे परणते? एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएवं रायगिहे नयरे रिद्धिस्थिमिय-समिद्धे,गुणसिलए चेइए सेणिए राया, धारिणी देवी, सीहसुमिणंपासित्ताणं पडिबुद्धा जाव जालि कुमारे जाए, जहा मेहो आव अट्ठो दाओ, जाव उप्पि पासाय जाव विहरइ ॥८॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे सेणिओ णिग्गओ, जहा मेहो तहा जाली वि णिग्गओ, तहेव णिक्खन्तो, जहा मेहो, एक्कारस अंगाई अहिजा ॥६॥ तएणं से जाली अणगारे जेणेव स्रमणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ २ त्ता एवं वयासी-इच्छामि गं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाय समाणे गुण-रयण संवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्तारणं विहरित्तर ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ॥ १०॥ ___तएणं से जाली अणगारे समणेणं भगवया महावीरेण अब्णुराणाय समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ २ त्ता गुणरयणं संवच्छरं तवो कम्म उवसंपजित्ताणं विहरह- तंजहा
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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