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________________ २२४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला . पविसइ तो जाणइ अमुगे एस गंधे; तओ अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ; तो धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज वा कालं असंखेज वा काल । से जहानामए वे इ पुरिसे अव्वत्तं रसं आसाइजा तेणं रसोत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रसेत्ति; तओ ईहं पविम्मइ, तो जाणइ अमुगे एस रसे, तो अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ, तो धार पविसइ, तओ णं धारेइ संखिजं वा कालं असंखिज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा तेणं फासेत्ति उग्गहिए, नो चेव जाणइ के वेस फासोत्ति; तो ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगेएस फासे, तो अवार्य पविसइ, तो से उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । ___ से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा तेणं सुमिणेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणोत्ति, तओ ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगे एस सुमिणे; तो अवायं पविसइ, तो ले उवगयं हवइ, तओ धार पविसइ, तो गं धारेइ संखेज का कालं, असंखेज वा काल से तं मल्लगदिटुंतेगां ।। सू० ३६॥ तं समासो च उविहं पराणत्तं, तंजहा-दव्वो , खित्तो, कालओ, भावओ । तत्थ दवप्रो रणं आभिणिबोहियनाणी आएसे सम्वाइं दवाई जाणइ, न पासइ । खेत्तोरणं आभिणिवोहियनाणी आरसेणं सब खेत्तं जाणइ न पासइ । कालो णं आभिणियोहियनाणी आएसेणं सध्वं कालं जाणइ न
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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