SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीउतराध्ययन सूत्र ] मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पोगकाले यदुही दुरन्ते । एवं श्रदत्ताणि समाययन्तो, सद्दे तितो दुहि सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि ? तत्थोवभोगे वि किले सदुक्खं, निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ||२५|| एमेव सद्दम्मि गओ पोसं, उas दुक्खोह परंपराओ | पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विधागे ॥४६॥ सहे विरतो मो विसोगा, [ १५९ अणिस्सो ||४४|| एएस दुक्खोह परंपरेण | न लिप्पर भवमज्मे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥४७॥ घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | श्रमणुन्नमाहु, तं दोस समय ओ तेसु स वीथरागेो ॥ ४८ ॥ गन्धरस घाणं गहणं वयन्ति, प्राणस्स गधे गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समरणुन्नमाहु गन्धेस जो गिद्धिमवेइ तिव्वं, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥४६॥ अकालिये पावर से विणासं ।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy