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________________ [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला १५० ] आयरियमाईए, वेयावच्चमि दलविहे | सेवणं जहाथामं, वेयावच्चं तमाहियं । ३३॥ वायला पुच्छ्रेरणा चेव, तहेव परियट्टा । अप्पेह। धम्म कहा, सज्झाओ पञ्चद्दा भवे ||३४|| अरुद्दाणि वजित्ता, झाएजा सुसमाहिए । धम्मसुक्काई भाणाई, झाणं तं तु बुहा वए ॥ ३५ ॥ सयणासगठाणे वा जे उ भिक्खू न वावरे | कायस्स विउस्सगो, छट्टो सो परिकित्तिओ || ३६ || एवं तवं तु दुविहं, जे सम्मं आयरे मुणी । सोखि संसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिश्रो ||३७|| ति बेमि ॥ तवमग्गं समत्तं ॥३०॥ ॥ अह चरणवही नामं एगतीसइमं अभयणं ॥ चरणविहिं पवक्खामि, जीवरस उ सुहावहं । जं चरिता बहू जीवा, तिरणा संसारसागरं ॥१॥ एगओ विरइं कुजा, एगो य पवत्तणं । असंजमे नियति च, संजमे य पवत्तां ॥२॥ रागदो य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्त भई निच्चं, से न अच्छर्इ मण्डले ||३|| दण्डाणं भारवाणं च, सल्लाां च तियं तियं । जे भिक्स चयइ निच्च, से न अच्छइ मण्डले ||४|| दिव्य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खु सहई निच्चं, से न अच्छर मण्डले ||५|| विगहा कसा सन्नाणं झाणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू वजई नियं से न अच्छर मण्डले || ६ ||
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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