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________________ ५४ ] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला ॥ अह बहुस्सुयपुज्जं णाम एगारसं अज्झयणं ।। संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणे। आयारं पाउकरिस्सामि, आणुपुब्बिं सुणेह मे ॥१॥ जे यावि होइ निबिजे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। अभिक्खणं उल्लवइ, अविणीए अबहुस्सए ।।२।। अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भइ । थम्भा कोहा पाएणं, रोगेणालस्सएण य ।।३।। अह अट्टहिं ठाणेहिं, सिक्खासीलि त्ति वुच्चइ । अहस्सिरे सया दन्ते, न य मम्ममुदाहरे ॥४॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए । अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीलि त्ति वुश्चइ ॥५॥ अह चोद्दसहि ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सो उ, निव्वाचन गच्छई ॥६॥ अभिक्खणं कोही हवह, पबन्धं च पकुव्वई । मेत्तिजमाणो वमइ, सुयं लक्ष्ण मजह । ७॥ अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पइ । सुप्पियस्लावि मित्तस्स, रहे भासइ पावयं ॥८॥ पइराणवाई दुहिले, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अवियत्ते, अविणीए त्ति वुश्चइ ॥९॥ अह पन्नरसहिं ठाणेहिं, सुविणीए त्ति वुच्चइ । नीयावत्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥१०॥ अप्पं च अहिक्खिवइ, पवन्धं च न कुब्वइ । मेत्तिजमाणे भयइ, सुयं लद्धं न मजइ ।।११।। १. मोहा।
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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