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________________ विद्युच्चर मुनि। [३६७ वेना नदीके तटपर वेनातट नगरमें राजा जितशत्रु राज्य करते थे। उनकी रानी जयावतीसे विद्युच्चर नामका उनके पुत्र था। वहांके कोतवाल यमपाश थे । उनकी यमुना स्त्रीसे यमदण्ड नामका पुत्र हुआ था । आपके कोतवाल वही यमदण्ड हैं । विद्युच्चर और यह एक गुरुके पास पढ़ते थे । इनने कोतवालीका ज्ञान प्राप्त किया था और विद्युच्चरने चौर्य शास्त्रका मंथन किया था । एक रोज विद्युच्चर और इनमें शपथ होगई कि जब तुम कोतवाल होगे तब मैं चोरी करूंगा और फ़िर देखूगा तुम कितने होशियार हो ! कालान्तरमें नितशत्रु और यमपाश जैन मुनि होगये । सो विद्युच्चर राजा हुये और यमदण्ड कोतवाल पदके अधिकारी हुये। परन्तु यह अपनी पूर्व शपथके भयसे यहां चले आये । राजन्, मैं ही विद्युच्चर हूं। सो मैं इनकी होशियारीकी बानगी लेने यहां चला आया। दिनमें कोढ़ीके वेषमें रहता था और रातको अपनी शपथके अनुसार इनको छकाता था। इसलिये यह हमारे मित्र ही है ।' उपरान्त विद्युच्चर यमदण्डको लेकर अपने शहरको वापस चला आया। किन्तु इस घटनासे उसे वैराग्य उत्पन्न होगया था। उसने शीघ्र ही अपने पुत्रको राज्यका भार सौंप दिया और जिन दीक्षा लेगया। इनके अतिरिक्त कई अन्य राजकुमार भी मुनि होगए थे। भव्यात्माओंके ऐसे ही आदर्शनीवन होते हैं। वह बड़ेसे बड़ा त्याग बातकी बातमें कर देते हैं। विद्युच्चर मुनि होगये । खूब ही आत्मोन्नतिके मार्गमें बढ़ने लगे और सर्वत्र उनका विहार होने लगा। एक रोज वे घूमते हुए ताम्रलिप्त नगरीमें जापहुंचे। वहांकी चामुण्डदेवीने इनको वहां
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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