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________________ ३४२] भगवान् पार्श्वनाथ । - राज-कन्याका कोमल कर विवाह-वेदी पर ग्रहण कर लिया । थोड़े ही दिनोंमें इन नवदम्पतिमें गाढ़ प्रेम होगया ! पद्मावती राजा दन्तिवाहनकी बड़ी प्रिय रानी बन गई ! राना दन्तिवाहन अंगदेशमें चम्पानगरके राना थे। उस समयके राजाओंमें यह भी मुख्य थे । वास्तवमें पद्मावती भी राजकन्या थी और वह कौसांबीके राजा वसुपालकी पुत्री थी। ('करसंविए रायहो पसरिय छाय हो, वसुपालहु पउमावइ दुहियाइया मणिविराए' ) यह राजदम्पति आनंदपूर्वक कालक्षेप कर रहे थे कि रानवंशको आल्हादके कारण यह समाचार सुनाई दिये कि रानी पद्मावतीके शुभ गर्भ है । रानीके यह दिन बड़ी खुशीसे कटने लगे । उसे निस बातकी आकांक्षा होती उसकी पूर्ति कर दी जाती थी। हर तरह उसे हर्षमना रखने का प्रबंध था। माता और परिस्थितिका प्रभाव गर्भस्थ बालकपर भी पड़ता है, इस बातका पूरा ध्यान रानी पद्मावतीके विषयमें रक्खा जाता था । इस दशामें गर्भस्थ बालकका प्रभाव भी माताकी चालढालमें प्रगट होने लगता है । माताकी भावनाओंसे ही उसका परिचय मिल जाता है । रानी पद्मावतीके हृदयमें भी अटपटी भावना उठ खड़ी हुई । वह असाधारण थी, जो गर्भस्थ बालकके असाधारण प्रभुत्वको प्रगट कर रही थी, उसकी इच्छा हुई कि कुऋतुमें ही मेघमण्डलसे आच्छादित आकाशके होते हुये रानाके साथ हाथीपर बैठकर वनविहार करना चाहिये । राजा दन्तिवाहन इस समय अपनी प्रियाकी प्रत्येक इच्छाको पूरी करनेमें तत्पर थे। उन्हें इस बातको पूरी करनेमें भी देर न लगी। उन्होंने अपने विद्याधर मित्रकी सहायतासे मायामई
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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