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________________ ३२८]... भगवान पार्श्वनाथ । . . हैं। वह आत्माका अस्तित्व और उसका स्वरूप करीबर जैनधर्मके अनुसार मानता था । आत्माको वह अरोगी सांसारिक मलोंसे विलग स्वीकार करता था एवं संसार परिभ्रमण सिद्धांतको भी स्वीकार करता था । भगवान पार्श्वनाथनीने इसी तरह आत्मा संबंधी सिद्धांत प्रतिपादित किया था । यही नहीं, अणुवाद (Atomic Theory) जो खास जैनियोंका ही सिद्धान्त है, वह भी उसको ठीक जैनधर्मके अनुसार मान्य था। उसका नग्न भेष भी भगवान पार्श्वनाथ नीके अनुरूप था। अष्टांग निमित्त ज्ञानको उसने पूर्वोसे ग्रहण किया ही था, जिनका प्रदिपादन भगवान पार्श्वनाथनीकी दिव्यध्वनिसे होचुका था। उसका चत्तारिपाणगायं चत्तारिअपाणगायं सिद्धांत जैनियोंके सल्लेखना व्रतके समान ही था। उसने सव्वे सत्ता, सव्वे जीवा, अधिकम्म, संज्ञी, असंज्ञी शब्द जो व्यवहृत किये थे, वह खास जैनियोंके शब्द हैं। मक्खलिने अपना छै अभिजाति सिद्धांत भी भगवान पार्श्वनाथके षटकाय जीवभेदसे ग्रहण किया था और जैन शास्त्र स्पष्ट रीतिसे उसके जैन मुनि होनेकी घोषणा करते ही हैं । अतएव जैन मुनि-दशासे भ्रष्ट होकर उक्त प्रकार जैनधर्मसे सादृशता रखते हुये सिद्धांतों का प्रतिपादन करना उसके लिए आवश्यक ही था ! उसका शिष्य उपक नामक आजीविक जैन तीर्थकर अनन्त जिनकी भी उपासना करता था । सचमुच आजीविक संप्रदायकी उत्पत्ति भगवान पार्श्वनाथनीके १-जैनसूत्र S. B. E. भाग १ भूमिका । २-इन्सा श्लो. आफ रिलीजन एण्ड इथिक्स भाग २ पृ० १९९ । ३-आजीविक्स भाग १ पृ० ४१ । ४-दीघनिकाय (S. B. E.) भाग २ पृ. ५३-५४ । ५-प्री-बुद्धिस्टिक इन्डियन फिलासफी पृ. ३०३ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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