SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान के मुख्य शिष्य । [३२१ पार्श्वनाथनीके चार खास शिष्योंका उल्लेख करते हैं। वे शिव, सुंदर, सोम और जय नामक थे । इनको भगवानकी दिव्यध्वनिसे ज्ञात होगया था कि वे उसी भवसे सिद्धपद प्राप्त करेंगे और इसी अनुरूप वे धार्मिक जीवन व्यतीत करने लगे थे । किन्तु जब ही मोक्ष प्राप्तिका समय निकट आया तो उनके हृदय क्षुभित होगए । आखिर वे भगवानकी शरणमें आये। जहां उन्हें शीघ्र ही केवलज्ञानकी प्राप्ति होगई और वे सब सिद्ध होगये ।' 'सूत्रकृतांग' में भी एक 'उदय पेढालपुत्त' नामक मुनिका उल्लेख है। यह श्रीपार्श्वनाथनी शिष्यपरम्पराके शिष्य वहां बतलाये गये हैं । (पासावंचिज्जे नियंठे मेयज्जे गोत्तेणं । ) इनका गोत्र मेदार्य ( मेयज ) था। इन्होंने कुमार पुत्र नामक ऋषिसे 'प्रत्याख्यान' संबंधमें राजगृहके लेप नामक गृहपतिके भवन में चर्चा की थी। यह लेप मूलमें नालंदाके निवासी थे, जहां इनकी ‘शेष द्रव्या' नामक उदकशाला और उसके पास 'हस्तियाम' नामका एक बड़ा बगीचा था । (पुरातत्त्व भाग २ अंक २ पृष्ठ १३३ ) इस प्रकार भगवान पार्श्वनाथनीके खास शिष्यों और उनके तीर्थके मुख्य मुनियों के पवित्र जीवन थे । इनके वर्णनसे स्पष्ट है कि भगवान पार्श्वनाथनीका भी एक संगठित मुनिसंघ था और वह भगवान महावीरजीके समय तक विद्यमान रहा था। यह बात न थी कि म० बुद्धके पहले कोई संगठित मुनिसंघ भारतमें नहीं ही था। भगवान पार्श्वनाथके भव्य शिष्यगण एक नियमित संघमें म° बुद्धके पहलेसे जैनधर्मकी विनय वैजयंती उड्डायमान कर रहे थे, भव्योंको - 1-लाइफ एण्ड स्टोरीज ऑफ पार्श्वनाथ पृ० १७० ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy