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________________ ३१४ ] भगवान् पार्श्वनाथ | .. राज्यसिंहासनपर आरूढ़ किया और स्वयंने पिहिताश्रव आचार्य के. निकट जाकर दीक्षा ग्रहण करली थी । इधर सुकौशल राज्याधिकारी तो हुये, परन्तु इनका चित्त सदा ही राज्यकाजसे उदास रहता था । नौबत यहांतक पहुंची कि एक मंत्रीने इनके विरुद्ध षड्यंत्र भी रचडाला कि जिससे यह सुगमता से राज्यच्युत किये जासकें; किंतु दूसरे राज्यभक्त मंत्रीने इसका भंडा फोड़ दिया ! परिणामतः सुकौशल राजाने राज्यभक्त मंत्रीको राज्यपद दिया और स्वयं मोक्षलाभ किया था । इस कथा से भी पिहिताश्रव मुनिराजका भगवान् पार्श्वनाथनीके तीर्थ में होना प्रमाणित है, क्योंकि भगवान महावीर के धर्मप्रचार के समय कौशाम्बीमें राजा शतानीकका राज्य होना लिखा गया है, जिनसे पहले ही उक्त घटना घटित हुई होगी! किन्तु इस कथा में कौशाम्बीको कौशल्य देश में अवस्थित बतलाया है; 2 जो ठीक नहीं है क्योंकि कौशलकी राजधानी श्रावस्ती थी और कौशाम्बी बत्सदेशका राजनगर थे। साथ ही श्री 'उत्तरपुराण' जीके निम्न अंशसे इस कथाकी बहुत सदृशता है और इसमें घटनास्थान चम्पा बतलाया गया है; यथा: ૧ ૨ "अस्त्यत्र विषयोगाख्यः संगतः सर्ववस्तुभिः । नगरी तत्र चंपाख्या तत्पतिः श्वेतवाहनः ॥ ८ ॥ श्रुत्वा धर्म जिनादस्मान्निनिर्वेगा हिताशयः । राज्यभारं समारोप्य सुते विमलवाहने ॥ ९ ॥ संयमं बहुभिः सार्द्धमत्रैव प्रतिपन्नवान् । १ हमारा 'भगवान महावीर पृ० १०८ । २ जैन कथासंग्रह पृ० १३५ । बुद्धिस्ट इन्डिया पृ० २३२ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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