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________________ [४] गुरुशिष्य परम्परा प्रणालीपर बड़ी होशियारीके साथ चला आरहा था । उसमें अज्ञात भूलका होना असंभव था। उपरांत ईसाकी प्रारंभिक शताब्दियोंमें वही तत्कालीन ऋषियोंकी दृढ़स्मृति परसे लिपिबद्ध कर लिया गया था। अवश्य ही ऋषियोंकी स्मृति शक्तिकी हीनताके कारण उस समय वह सर्वांगरूपमें उपलब्ध नहीं हुआ; परन्तु जो कुछ उपलब्ध था वह बिल्कुल ठीक और यथार्थ था । इस अवस्थामें जैन मान्यताको असंगत बतलानेके लिए कोई कारण दृष्टि नहीं पड़ता। इसलिये श्री पार्श्वनाथ भगवानको भी एक काल्पनिक व्यक्ति नहीं ख्याल किया जासक्ता है । ___ भारत वसुन्धराके गर्भसे जो प्राचीन पुरातत्व प्राप्त हुआ है, उससे भी यह। प्रमाणित होता है कि प्राचीन भारतमें अवश्य ही श्री पार्श्वनाथजी नामक एक महापुरुष होगये हैं; जो जैनियोंके तेवीसवें तीर्थकर थे। ओड़ीसा प्रान्तमें उदयगिरि खण्डगिरि नामक स्थान "हाथींगुफा" का शिलालेखके कारण बहुप्रख्यात है। यहांका शिल्पकार्य जैन सम्राट् भिक्षुरान महामेघवाहन खारवेल द्वारा निर्मापित कराया गया था, जिनका समय ईसवीसनसे २१२ वर्ष पूर्वका निश्रित । इभ शिल्पकार्यमें भगवान पार्श्वनाथजीकी एकसे अधिक नग्न मूर्तियां और उनके पवित्र जीवनकी प्रायः सब ही मुख्य घटनायें बहुत ही चातुर्यसे उकेरी हुई मिलती हैं। अब यदि भगवान पार्श्वनाथ नामक कोई महापुरुष वास्तवमें हुआ ही न होता तो आजसे सवादोहनार वर्ष पहलेके मनुष्य उनकी मूर्तियां और १. संक्षिा जैन इतिहास पृ. ७०। २-हिन्दी विश्वकोष भा० १ पृ० ५८९ । ३-बंगाल, बिहार, ओड़ीसा जैन स्मारक पृ० ८९ ।
SR No.022599
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1931
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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