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________________ ८४ ] भगवान पार्श्वनाथ | 1 धर्म प्रणेता साक्षात् जीवित परमात्माओंने इन वैदिक ऋषियोंके सिद्धान्तोंके विरुद्ध समय समयपर नितान्त वस्तुस्वभावमय धर्मका निरूपण किया था । अवश्य ही आधुनिक विद्वान् इस व्याख्यासे सहसा महमत नहीं होते हैं, पर यह हम देख ही चुके हैं कि स्वयं वेदों में ही वेदविरोधियोंका अस्तित्व बतलाया गया है । ये 1 वेदविरोधी अवश्य ही जैन श्रमण थे । 1 याज्ञवल्क्यके सिद्धांतोंने वैदिक धर्ममें उपरांत ईश्वरवादको उत्तेजना दी | इसमें ब्राह्मणों का पुराना ही श्रद्धान था, परन्तु याज्ञactrs सिद्धांतोंने इसके लिये नया क्षेत्र ही सिरज दिया । बृहद आरण्यक उपनिषद के प्रथम अध्यायमें इस मतका निरूपण किया हुआ मिलता है । 'पुरुष - विधि- ब्राह्मण' के कर्त्ता आसुरी अनुमान किए गए हैं । आसुरी ही इस जागृतिमें मुख्य व्यक्ति थे । बौद्ध शास्त्रों में आसुरीका उल्लेख मिलता है। वहां इनके बारे में कहा गया है कि सूर्यको ही इन्होंने प्रथमजन्मा माना था और वही इनके निकट 'ब्रह्मा महाब्रह्मा, अभिभू, सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञ, शासक, ईश्वर, कर्ता, निर्माता श्रेष्ठ, संजिता, वर्तमान और भविष्यत्का पिता था ।' उसके मन में इच्छा होते ही मनशक्तिसे (मनोपनिधि ) उसने सृष्टि रच दी थी । यही भाव 'पुरुष - विघ - ब्राह्मण' में दिया हुआ है । यही आसुरी संभवतः निरीश्वर सांख्यमतके उपदेशक हैं । श्वेताम्बर जैनग्रन्थके अनुसार वह भगवान ऋषभदेव के समय के मरीचि नामक भृष्ट जैनमुनि और सांख्यमतके प्रणेता के शिष्य 1 १ - कल्पसूत्र पृ० ८३ । २ - ए हिस्ट्री ऑफ प्री-बुद्ध० इन्ड० फिला ० पृ० २१३-२१७ ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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