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________________ उस समयकी सुदशा । [ ४९ जातिका मद करना वृथा है । ब्राह्मण जैसे उत्तम वर्ण में जन्म लेकर भी अपने नीच आचार द्वारा एक व्यक्ति महापतित और नीच होता हुआ देखा जाता है । तथापि एक नीचवर्ण उच्चवर्णके साथ सम्बन्ध करके अपने आचरण सुधारता भी इसलोक में दिखाई पड़ता है । यही बात एक अन्य जैनाचार्य स्पष्ट प्रकट करते हैं।' अतएव जातिका घमण्ड किस विरतेपर किया जाय ! उस प्राचीनकालमें जातिमदका भूत लोगोंके सिरसे उतारनेका प्रयत्न जैनी करते थे और उस समय भी यह मद लोगों को खूब चढ़ा हुआ था, यह बात जैन ग्रन्थोंके उक्त उद्धरणसे स्पष्ट है । ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह कथन सत्यको लिये हुए प्रगट होता है । म० बुद्ध के समयका जो विवरण हमको मिलता है, उससे कुछ विभिन्न दशा कुछ वर्षों पहले नहीं हो सक्ती है और वास्तव में जो सामाजिक दशा म० बुद्ध के समय में बताई गई है वह जरूर ही उस अवस्थाको क्रम १ - एकोदूरात्यजतिमदिरां ब्राह्मणत्वाभिमानादन्यः शूद्रः स्वयमहमितिस्नातिनित्यंतयैन । द्वावप्येतौयुगपदुदरान्निर्गतौशूद्रिकायाः शूद्रौसाक्षादपि च चरतो जातिभेद भ्रमेण ॥ १ ॥ ३ ॥ -श्री अमितगतिः वर्तमानकालके दिग्गज विद्वान् स्याद्वादकेसरी, न्याय वाचस्पति स्व ० पं० गोपालदासजी बरैयाने भी शास्त्राधारोंसे यही मत प्रगट किया है । वे अपने एक लेख में, जो 'जैनहितैषी भा० ७ अंक ६ ( वीर नि० सं० २४३७ ) में प्रगट हुआ है, स्पष्ट लिखते हैं कि, " ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन तीन वर्णोंके वनस्पतिभोजी आर्य मुनि धर्म तथा मोक्षके अधिकारी है; म्लेच्छ और शूद्र नहीं हैं : परन्तु म्लेच्छों और शूद्रोंके लिये भी सर्वथा मार्ग बन्द नहीं है । क्योंकि त्रस जीवोंकी संकल्पी हिंसासे आजीविकाका त्याग करने से कुछ कालमें म्लेच्छ आर्य होरुक्ता है और शूद्रकी आजीविका परिवर्तनसे शूद्र द्विज होसता है । इत्यादि । " ४
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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