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________________ 3 - 0 0 - 0 - -0 - -0 - -0 - -0 - - - - - - - - - मंगल-बिन्नू या ! . ( शालिनोवृत्त) .वामा-प्यारे हाँ हिए मध्य आके, . वारो सारी शृङ्खला ज्ञान लाके जागे मेरी बुद्धि गाऊं तुम्हारेनीके नीके सद्गुणोंको निहारे ! प्रेमासक्ता इन्द्र चक्राधिसारे, गाते तेरे हैं गुणोंको अपारे ! कैसे पाऊं पार मैं नाथ गाके बौने पाते हाथ कैसे बढ़ाके !! तो भी स्वामी आपमें प्रेम साने, बैठा गाने गीत हूं मैं अज्ञाने; सेवा तेरे पादकी भक्ति धारे, हे तीर्थेश्वर पार्थ ! तेरे सहारे ! दाया कीजे हे प्रभो हो दयाला ! दीजे बोध हे विभो ! हो कृपाला!! जावे बाधा भाग सारी उदारो! पाऊं तेरा 'दर्श' भौ-सिन्धु तारो!! --कामताप्रसाद जैन । -0 - -0 - -0 - -0 - -0 - -0 - -0
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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