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________________ उस समय की सुदशा। [४१ (२) दूसरा मार्ग उत्तरसे दक्षिण पूर्वकी ओरको था । यह श्रावस्तीसे राजगृहको गया था। श्रावस्तीसे चलकर इसपर मुख्य नगर सेतव्य, कपिलवस्तु, कुशीनारा, पावा, हत्थिगाम, भन्डगाम, वैशाली, पाटलीपुत्र और नालन्दा पड़ते थे। यह मार्ग शायद गया तक चला गया था और वहांपर यह एक अन्य मार्ग जो समुद्रतटसे आया था, उससे मिलगया था । यह मार्ग संभवतः ताम्रलिप्तिसे बनारसके लिये था। (३) तीसरा मार्ग पूर्व से पश्चिमको था। यह मुख्य मार्ग था और प्रायः बड़ी नदियोंके किनारे २ गया था। इन नदियोंमें नांवें किरायेपर चलतीं थीं। सेहनति, कौशाम्बी, चम्पा आदि सर्व ही मुख्य नगर इस मार्गमें आते थे । ___ इस तरह ये व्यापारके विशेष प्रख्यात् मार्ग उस समयके थे । इनमें महाराष्ट्र तक ही सम्बन्ध बतलाया गया है । दक्षिण भारतके विषयमें कुछ नहीं कहा गया है । पुरातत्वविदोंका मत है कि उस जमानेमें उत्तरभारतवालोंको दक्षिणभारतके विषयमें बहुत कम ज्ञान था-वे उसको 'दक्षिणपथ' कहकर छुट्टी पा लेते थे परन्तु जैनशास्त्रोंमें हमें इस व्याख्याके विपरीत दर्शन होते हैं । वहां प्राचीनकालसे दक्षिण भारतका सम्बन्ध जैनधर्मसे बतलाया गया है। भगवान ऋषभदेवके पुत्र बाहुबलि दक्षिण भारतके ही राजा थे' इस अपेक्षा जैनधर्मका अस्तित्व वहां वेदोंके रचे जानेके पहलेसे प्रतिभाषित होता है, क्योंकि हिन्दुओंके भागवतमें ( अ० ५, ४-५-६ ) ऋषभदेवको आठवां और वामनको बारहवां अवतार १-आदिपुराण पर्व ३४-३७ और 'वीर' वर्ष ४ पोदनपुर ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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