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________________ २६ ] भगवान पार्श्वनाथ | वर्तियोंके लिये अपूर्व सामिग्रीका प्राप्त करना और सार्वभौमिक : सम्राट् होना अनिवार्य है इमी अनुरूप राजा वज्रनाभि भी छह खंडकी विजय करके चक्रवर्ती पदको प्राप्त हुये । सार्वभौमिक सम्राट् होगए । प्रबल पुण्यसे अटूट सम्पदा और भोगोपभोगकी सामिग्रीका समागम इनको हुआ था । जिन राजाओंको इनने परास्त किया था, प्रायः उन सबने ही इनकी बहुत कुछ नजर भेंट की थी तथा अपनी सुकुमारी कन्याओंका पाणिग्रहण भी इनके साथ कर दिया था । इन राजाओंमें बत्तीस हजार म्लेच्छ राजा भी थे । इनकी कन्यायोंके साथ भी राजा वज्रनाभिने विवाह किया था । उस समय विवाह सम्बंध करना एक नियत परिधि में संकुचित नहीं था बल्कि वह बहुत ही विस्तृत था। यहां तक कि उच्चकुली मनुष्यों के लिए शूद्र और म्लेच्छों तकमें विवाह सम्बंध करना मना नहीं था, जैसे कि सम्राट् वज्रनाभिके उदाहरणसे प्रकट है । इस तरह सार्वभौमिक सम्राट्पदको पाकर राजा वज्रनाभिः सानन्द राज्य कर रहे थे । बह अपने विस्तृत राज्यकी समुचित रीतिसे व्यवस्था रखते थे; परन्तु इतना होते हुए भी वह अपने धर्मको नहीं भूले हुये थे । अर्थ और कामकी वेदीपर धर्मकी बलि नहीं चढ़ा चुके थे, जैसे कि आजकल होरहा है । योंही सुखसागर में रमण करते हुए सम्राट् वज्रनाभि कालयापन कर रहे थे, कि एक रोज शुभ कर्मके संयोगसे क्षेमंकर नामक मुनि महाराजका समागम हो' गया । भक्तिभावसे सम्राट्ने उनकी वन्दना की और मन लगाकर उनका सर्व हितकारी उपदेश सुना। मुनि महाराजका उपदेश इतना ' मार्मिक था कि उसने वज्रनाभि सम्राट्का हृदय फेर दिया । वह
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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