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________________ १८ भगवान पार्श्वनाथ | मरुभूति ब्राह्मण पशुकी योनि में आन पड़ा । राजर्षिके मार्मिक उपदेशने हाथीके हृदयको पलट दिया । पशु पर्यायके दुःखोंसे छूटने के लिए उसने सम्यग्दर्शन पूर्वक अणुव्रतोंको धारण कर लिया । धर्म भावना उसके हृदय में जागृत हो गई । राजर्षि तो अपने मार्ग गए और वह हस्ती धर्मध्यान में दिन बिताने लगा। एक पशुके ऐसे धर्मकार्यपर अवश्य ही जीको सहसा विश्वास नहीं होता; किन्तु इममें अचरज करनेकी कोई बात नहीं है । पशुओंमें भी बुद्धि होती है । वह स्वभावतः आवश्यक्ता के अनुसार यथोचित मात्रा में प्रगट होती है। उनके प्रति यदि प्रेमका व्यवहार किया जाय और उनकी पशुताको दूर करके उनकी बुद्धिको जागृत कर दिया जाय, तो वह अवश्य ऐसे२ कार्य करने लगेंगे कि जिनको देखकर आश्चर्य होगा । आज भी ऐसे २ शिक्षित बैल और बकरे देखे गए है कि जो अपने खुरोंसे गुणा करके खास आदमियोंके जेबों में वखे हुए रुपयों की संख्या बता देते हैं और जम किसीने कोई चीज चुराई हो तो उसके पास जाकर खड़े होजाते हैं । सरकमों* खेटोको सब कोई जानता है, साधारणतः कुत्तों की स्वामिभक्ति, किसी चीनका पता लगानेकी बुद्धि और सिखाने पर मनुष्योंकी सहायता करने के प्रयत्न प्रतिदिन देखे जाते हैं। ये ऐम उदाहरण, हैं जो में पशुओं द्वारा उस मनोवृत्तिको प्राप्त करने की बातपर विश्राम करने के लिए बाध्य करते हैं, जिससे हाथी आदि पंचेन्द्रि न जीव धर्माराधन करनेकी योग्यता पा लेते हैं। अस्तु, 4 हाथी विविध रीतिसे धर्मका अभ्यास करने लगा | त्रस जबकी वह भूल कर भी विराधना नहीं करता था । समताभाववं
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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