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________________ नागवंशजों का परिचय | - [ १८७. केवल एक ही स्वतंत्र व्यक्ति नहीं था अर्थात् उनके निकट अनेक परमात्मा थे ।' मिश्रवासी आत्माका अस्तित्व भी स्वीकार करते थे और उसका पशुयोनि में होना भी मानते थे । उसके अमरपनेमें भी विश्वास रखते थे । यह सब मान्यतायें बिलकुल जैनधर्मके समान हैं । भगवान मुनिसुव्रतनाथ और फिर भगवान नमिनाथकेतीर्थोके अन्तराल में यहां जैनधर्मका विशेष प्रचार था, यह जैनशास्त्रोंसे प्रकट है । तथापि यूनानवासियोंकी साक्षीसे मिश्र के निकवर्ती असिनिया और इथ्यूपिया प्रदेशों में जैन मुनियोंका अस्तित्व आजसे करीब तीन हजार वर्ष पहिले भी सिद्ध होता है। इस "दशामें उक्त सादृश्यताओंको ध्यान में रखते हुये यदि यह कहा जावे कि मूलमें तो मिश्रवासियोंका धर्म जैनधर्म ही था, परन्तु उपरांत अलंकारवादके जमाने की लहर में उसका रूप विकृत होगया था तो कोई अत्युक्ति नहीं है । यह विदित ही है कि मिश्र, मध्य एशिया' आदि देशों में अलंकृत भाषा और गुप्तवाद (Allegory) का प्रचार होगया था और धर्मकी शिक्षा इसी गुप्तबादमें दी जाती थी । * मिश्रवासियोंकी अलंकृत भाषा और उनकी गुप्त बातें (Mystries) बहु प्राचीन हैं । इन गुप्त बातोंको जाननेके अधिकारी मिश्र में पुरोहित और उनके कृपापात्र ही होते थे। यह पुरोहित बड़े ही सादा मिजाज़ और संयमी होते थे । यह साधारण लोगों को ऐसी शिक्षा देते थे जिससे उनको अपने परभव और पुण्य - पापका भय १ - मिस्ट्रीज ऑफ फ्री मैसनरी पृ० पृ० १८७ ३ - ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग कान्फल्यून्स ऑफ ऑपोजिट्स पृ० १-६ १७३ ६-७ - पूर्व० पृ० १९१ २७१ २ - दी स्टोरी ऑफ मैन ३ पृ० ६ - दी स्टोरी ५ ४ – सपलीमेन्ट टू ऑफ मैन पृ० .
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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