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________________ २७८) भगवान पार्श्वनाथ हनूमानजीको किष्किन्धासे चलनेपर पहले पर्वतपर अवस्थित राजा महेन्द्र मा नगर मिला था। महेन्द्रपुर और पर्वत दक्षिण भारतमें ही होना चाहये, क्योंकि हनूमान दक्षिणकी ओर चले आये थे। आनकल भी द क्षण भारतके बिल्कुल छोर पर महेन्द्र पर्वतका अस्तित्व हमें मलता है । इस अवस्थामें महेन्द्रपुर इसी पर्वतपर अवस्थन होना चाहिये । राजा महेन्द्र अपने नगरकी अपेक्षा ही महेन्द्र कहलाना होगा । महेन्द्रपुरसे राजा महेन्द्रको किष्किन्धापुर पहुंचाकर वमानपर बैठकर अगाड़ी चलनेपर उनको दधिमुख नामक द्वीप मिलः था; जिसमें दधिमुख नगर था। यहांके वनमें उन्होंने दो चार " मु नयोंको अग्निमें जलते हुए बच या था। दधिमुख एक प्रपेद्ध शाक्य (Scythic) जाति प्रमाणित हुई है और यह 'दहय' (Pahee) कहलाती एवं जक्षत्रस नदी (Jaxatres) के ऊपरी भागके किनारोंपर रहती थी। इन्हींकी अपेक्षा तमाम मध्य ऐशिया दहय-देश' के नामसे विख्यात हुआ था। इस अवस्थामें दधिमुखई प समस्त मध्य ऐशिया होसक्ती है और उसमें दधिमुख नगर दहय नातिका निवास स्थान होसक्ता है । यहांका राजा गन्धर्व पद्मपुराणमें बताया गया है और यह नाम जाति अपेक्षा प्रकट होता है । मध्य ऐशिया अथवा रसातलमें गन्धर्व जाति भी रहती थी, यह प्रगट ही है । अतएव दधिमुख नगर और उसका राजा आजकलके ईरान ( Persia) की सरहदपर कहीं होना चाहिये । दधिमुखद्वीपके अगाड़ी हनूमान लंकाकी सीमापर पहुंच गये थे। १. इन्डियन हिस्टॉरिकल क्वाटरीली भाग २ पृ० ३४९ । २-३. पूर्व• भाग १ ० ४६०. ४. पूर्व० भाग २ पृ० २४६.
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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